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Friday, April 23, 2010

भाग्य-विधाता : आज फूल नहीं लाया हूँ

आज फूल नहीं फल लाया हूँ।
गर्मी के मौसम में होने वाला ये बेल का फल प्राचीन भारतीय आयुर्वेद में वर्णित तीन अमृत-फलों में से एक है। इसकी ख़ूबियों से तो ज़्यादातर लोग वाकिफ़ होंगे, मगर ज़रा डाल पे इसकी ख़ूबसूरती तो देखिए!
आप कह सकते हैं कि डाल पे तो हर चीज़ ख़ूबसूरत लगती है!
हाँ लगती तो है, मगर ख़ुद कटी हुई डाल या गिरा हुआ पेड़?
जनाब, वो भी ख़ूबसूरत लगता है, अगर आप उसका हौसला देखें कि जिस इन्सान ने उसे काट डाला हो, उसे नज़र-अन्दाज़ करके अपनी सारी जिजीविषा से वो पेड़ किस ऊर्जा का, किस कोशिश का परिचय देता है वापस अपनी जद्दोजहद शुरू करने में - ताकि वो उसी इन्सान की नस्लों को छाँह और पंछियों को आसरा दे सके।
इसीलिए आज ये तीसरी तस्वीर भी लाया हूँ - जिसमें उखड़े पड़े पेड़ से निकलती झूमती टहनियों को जैसे गर्मी की तकलीफ़ों से अगर सरोकार है तो सिर्फ़ इतना कि वो उस गर्मी में छाँह देने के अपने फ़र्ज़ को और शिद्दत से महसूस कर रही हैं और डाल, या धीरे-धीरे फिर से पूरा पेड़ बनने की कोशिश में लगी हैं।
ये नज़र-नज़र की बात है कि आप क्या देखते हैं, दर्द या राहत, ग़म या ख़ुशी, हार या हौसला!
जैसा हम देखते हैं, वैसा ही सोचते हैं; जैसा सोचते हैं, वैसा ही चुनते हैं और जैसा चुनते हैं, वैसा ही पाते भी हैं।
आप ही हैं अपने भाग्य-विधाता।
जब चु्नना अपने हाथ में है तो क्यों न बेहतर चुनाव किए जाएँ और उदासी न बाँटकर, उम्मीद बाँटी जाए!
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