यह पुर्जी आज पड़ी मिली। जनवरी 26 को गणतंत्र दिवस का "दैनिक हिन्दुस्तान अख़बार" पढ़ने के बाद जो मन में आया, वहीं अख़बार पर टीप दिया। जब ब्लॉग पर आया फ़रवरी में, तब ये थोड़ा ही सोचा था कि इसे ब्लॉग पर ले जाना होगा। फिर जब ये मिला आज, तो थोड़ा सा श्रम करके उस अख़बार को भी ढूँढ निकाला, और स्कैन कर के ले आया हूँ।
अब अन्त में यह भी कि पुर्जी आज ही क्योंकर मिली ?
मैं अपना आवास बदल रहा हूँ। नये आवास में जाने के पहले सभी सामान सहेजने में उम्मीद है कि और भी बहुत सी खोई हुई चीज़ें मिलेंगी - और कई तो शायद ऐसी भी चीज़ें मिलें -जो खो गयीं यह बात भी हमें पता न हो।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------रचना से पूर्व यह ख़बर पढ़ें - 26 जनवरी 2010, दैनिक हिन्दुस्तान से-
धुने गए पन्नालाल - सच बोलने पर |
जय हो!
तो सबकी जय बोलने के बाद पेश है अब यह हज़ल -
तो सबकी जय बोलने के बाद पेश है अब यह हज़ल -
मुँह पे सच बोलते हो पन्नालाल!
तुम निहायत "वही" हो पन्नालाल।
पिटके ख़ुद, आक़ा को भी पिटवाया
उससे नाराज़ क्यूँ थे पन्नालाल?
तुम जेहादी नहीं हो माना, पर
उससे कम भी नहीं हो पन्नालाल
जिसकी लाठी हो - सिर्फ़ भैंस नहीं,
अब है सब कुछ उसी का पन्नालाल
भ्रष्ट वो - भ्रष्ट को - जो भ्रष्ट कहे,
क्यूँ समझते नहीं हो पन्नालाल!
तुम इशारों की छोड़कर भाषा-
मराठी सीख लो न पन्नालाल
मैं भी सच बोलने को कहता हूँ-
अब किसी से न कहना पन्नालाल
तुमको चालाकी सिखाने मैं चला-
मैं भी कितना गधा हूँ पन्नालाल!
मुल्क़ आज़ाद लोकतन्त्र सही,
यहाँ गणतन्त्र भी है पन्नालाल
तुम निहायत "वही" हो पन्नालाल।
पिटके ख़ुद, आक़ा को भी पिटवाया
उससे नाराज़ क्यूँ थे पन्नालाल?
तुम जेहादी नहीं हो माना, पर
उससे कम भी नहीं हो पन्नालाल
जिसकी लाठी हो - सिर्फ़ भैंस नहीं,
अब है सब कुछ उसी का पन्नालाल
भ्रष्ट वो - भ्रष्ट को - जो भ्रष्ट कहे,
क्यूँ समझते नहीं हो पन्नालाल!
तुम इशारों की छोड़कर भाषा-
मराठी सीख लो न पन्नालाल
मैं भी सच बोलने को कहता हूँ-
अब किसी से न कहना पन्नालाल
तुमको चालाकी सिखाने मैं चला-
मैं भी कितना गधा हूँ पन्नालाल!
मुल्क़ आज़ाद लोकतन्त्र सही,
यहाँ गणतन्त्र भी है पन्नालाल