ये बताना ज़रूरी है कि इस पोस्ट का पूरा आनन्द तभी मिलेगा अगर आप ने ज्ञानदत्त जी की पोस्ट पर यह चित्र ही न देखा हो, पोस्ट पढ़ी भी हो…
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कोई है, जो सुबह से शाम तलक जलता है
जुलूस बादलों का जा के तब निकलता है
औरतें खटती हैं, पिटती हैं, अब भी जलती हैं
तब कहीं जा के ज़माने का पेट पलता है
ये क़ायनात अधूरी है बिना जिस औरत
आगे निकले तो बहुत मर्द का दिल जलता है
साज़िशें रचती है औरत ही औरतों के खिलाफ़
मर्द का दिल तो बात-बात पर पिघलता है
जो जहाँ-जिसका भी चाहे, बदल दे मुस्तक़बिल*
उसी औरत का देखें वक़्त कब बदलता है
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मुस्तक़बिल = भविष्य, नसीब