यथासंभव यह ब्लॉग हिन्दी में, हिन्दी हेतु रहेगा। सर्च इंजनों या अन्य तकनीकी कारणों से कुछ कोटि-शब्द अंग्रेज़ी में भी हो सकते हैं। मूलत: यह एक इलाहाबादी ब्लॉग है उस संगम के तीर(तट) से, जिसमें पवित्र नदियों गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है जो यहाँ की साहित्यिक-सांस्कृतिक अन्तर्धारा में प्रवाहित है।
साथी
Saturday, February 20, 2010
Thursday, February 18, 2010
बलिहारी गुरु आपने जिन ब्लॉगिंग दई बताय
अब इन्सान चाहता है क्या और होता है क्या ये तो आप सबको पता ही है। चाहा था 2007 में कि ब्लॉग लिखूँगा, वक़्त मिला गया ऐसा लगता था; सो लिख रहा हूँ 2010 में। वो भी पहला महीना ही नहीं आधी फ़रवरी भी बिता कर। अरे भाई, वक़्त से क्या होता जब गुरू ही नहीं मिले थे?
अब गुरू मिले तो शुरू हो गया। वैसे हमारे गुरू ज्ञानदत्त जी का भी प्रभामण्डल गज़ब का है! उनके चरणों का प्रताप है कि जिस कमरे में बैठते हैं उसके ठीक नीचे बैठते हैं हमारे कपिल भाई - सो कवि हो गए। हम पर असर यह कि कवि थे सो गद्य में लिखना शुरू कर दिया। छ्पास कभी रही नहीं, मगर ब्लॉग ऐसा चर्राया कि रोज़ाना कोशिश जारी है। अभी सीख रहे हैं सो कुछ उल्टा-सुल्टा कमेण्ट मत मारिएगा आप लोग। बाद में तो हम खैर सीख जाएँगे तो फिर सीखे-सिखाए आदमी पर कमेण्ट करना तो आप लोगों को वैसे भी शोभा नहीं 'डे' गा।
अब जरा जाएँ गुरू जी से सीख के आएँ कि फोटो, वीडियो, कमेण्ट सब कइसे क्या होता है, फिर बताते हैं एक-एक को…
और क्या, पहलवानियै जैसे तो हम कर रहे हैं ई ब्लॉगिंग…
अब गुरू मिले तो शुरू हो गया। वैसे हमारे गुरू ज्ञानदत्त जी का भी प्रभामण्डल गज़ब का है! उनके चरणों का प्रताप है कि जिस कमरे में बैठते हैं उसके ठीक नीचे बैठते हैं हमारे कपिल भाई - सो कवि हो गए। हम पर असर यह कि कवि थे सो गद्य में लिखना शुरू कर दिया। छ्पास कभी रही नहीं, मगर ब्लॉग ऐसा चर्राया कि रोज़ाना कोशिश जारी है। अभी सीख रहे हैं सो कुछ उल्टा-सुल्टा कमेण्ट मत मारिएगा आप लोग। बाद में तो हम खैर सीख जाएँगे तो फिर सीखे-सिखाए आदमी पर कमेण्ट करना तो आप लोगों को वैसे भी शोभा नहीं 'डे' गा।
अब जरा जाएँ गुरू जी से सीख के आएँ कि फोटो, वीडियो, कमेण्ट सब कइसे क्या होता है, फिर बताते हैं एक-एक को…
और क्या, पहलवानियै जैसे तो हम कर रहे हैं ई ब्लॉगिंग…
Subscribe to:
Posts (Atom)