एक गौरैया मिली दालान में
दुपहरी में चहकती-चुगती हुई
घोंसले के चन्द तिनके, ले चिड़ा
इधर फुदका-उधर फुदका - ले उड़ा
और गौरैया,
फुदकती रही इठलाती हुई
एक गौरैया मिली दालान में...
धूप में, फिर छाँह में-
फिर धूप में जाती हुई
क्या कहूँ? कितने न जाने-भाव दिखलाती हुई
ज़िन्दगी हर पल फुदकते हुए जी जाती हुई
द्वेष सा कुछ भी न लेकर ध्यान में
एक गौरैया मिली दालान में ...