साथी

Monday, March 29, 2010

आपबीती : ब्लॉगरी

जो आपको बताने का वादा किया था कि गड़बड़ क्या हुई, क्या बीती हम पे ब्लॉगियाने के चक्कर में, वही किस्तों में बयान कर रहा हूँ। भई बीती भी तो किस्तों में ही है -
स्वर में गंभीरता उड़ेलते हुए देवी जी ने पूछा - "घर में कम्प्यूटर पर ये क्या करते रहते हो आजकल?"
उत्तर में मैंने क़बूला - "ब्लॉगरी सीख रहा हूँ।"
"तो ऑफ़िस में दिन भर क्या करते रहते हो?"
"जल्दी ही सीख जाऊँगा तो फिर इतना वक़्त नहीं लगाया करूँगा"
"ठीक है"
* * * * * * * * *
इस सम्वाद को भी एक महीना होने को आया। हालात सुधरने के बदले बिगड़ ही रहे हैं। देवी एक तो पहले ही रुष्ट, उनके हिस्से का समय अब कम्प्यूटर पर जो जाने लगा। निगहबानी शुरू हो गई कि आख़िर ऐसा क्या चक्कर है? क्या है जो लत जैसा पकड़ रहा है? एकाएक आ-आकर पीछे से देखा जाता था कि स्क्रीन से ही कोई क्लू मिले। दूसरे किस्मत से उन्होंने जब देखना चाहा, कुछ न कुछ गड़बड़ मिला। अगर सुरागरसी के लिए बच्चों की मदद ली होती, तो शायद बात कुछ सँभल भी जाती, मगर यहाँ तो सारी करमचन्दई भी मैडम ख़ुद कर रही थीं।

परसों से मामला और बिगड़ा।
इधर मैंने एक बढ़िया ब्लॉग फ़ॉलो करने की कार्यवाही पूरी की, चटका लगाया और मैडम तब तक पीछे आकर खड़ी हो गईं - "आजकल बड़ी मेहनत पड़ रही है - ऑफ़िस से आते ही फिर जुट जाते हो"
इससे पहले कि मैं उनकी अनपेक्षित सदाशयता का आभार प्रकट करता, स्क्रीन पर ब्लॉगर बाबा उवाच - "अब आप सफलतापूर्वक कुमारी …देवी का अनुसरण कर रहे हैं" उन्होंने पढ़ना शुरू कर दिया था। क्या करें अब?
ब्लॉग का शीर्षक कुछ और है, मगर ब्लॉगर पर लोगों ने दर्ज अपने नाम से कर रखा है, सो हमने ये तो सोचा ही नहीं था कि ब्लॉग के बदले ब्लॉगर का नाम ही आ जाएगा। हिन्दी में अनुसरण करने का अर्थ तो वही है जो अंग्रेज़ी में फ़ॉलो करने का, पर संस्कृति के फ़र्क से अनर्थ क्या-क्या हो सकते हैं! तो इस हिसाब से तो हम कई कुमारी और कई श्रीमती का अनुसरण करते पाए जा सकते हैं।
पूछा गया कि ये सब किस के चक्कर में पड़ कर सीखा है? तो गुरू ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का नाम लेना ही पड़ा हमको। उन्होंने थोड़ा धीरज रखा और हमसे कहा कि ज़रा उनकी भी "हलचल" दिखाओ। बस फिर क्या था, साँस में साँस आई और हमारी उँगलियों ने तुरन्त हलचल दिखाई।
मगर गुरूजी को भी आज ही त्रासदी का फ़लसफ़ा छापना था -
"मेरे जीवन की त्रासदी यह नहीं है कि मैं बेइमान या कुटिल हूं। मेरी त्रासदी यह भी नहीं है कि मैं जानबूझ कर आसुरी सम्पद अपने में विकसित करना चाहता हूं। मेरी त्रासदी यह है कि मैं सही आचार-विचार-व्यवहार जानता हूं, पर फिर भी वह सब नहीं करता जो करना चाहिये।"
और हमारी त्रासदी? भवानी उवाच - "तो ये ही गुरू हैं? चलो ये कम से कम मान तो रहे हैं साफ़-साफ़। तुम तो मानोगे भी नहीं।"
Wife1 भृकुटि तन चुकी थी, आवाज़ में तीखापन और रूप में रौद्र-भाव, भवानी वीर-रस के स्थायी भाव का अवलम्बन लेकर अब कहीं हमारे कम्प्यूटर को वीर-गति न दे दें!
हड़बड़ी में हम भूल गए कि क्या करने जा रहे हैं - सो नाम ले बैठे उड़न तश्तरी का।
मैडम बोलीं "तो तुमको क्या बिलागिया के अब दूसरे ग्रह से संपर्क करना है?"
हम उन्हें यह बताने लगे कि नहीं-नहीं, समीर लाल जी एक बड़े प्रतिष्ठित ब्लॉगर हैं, बड़ी पूछ है उनकी, बड़े पहुँचे हुए हैं, लो ये उनका पेज देखो…और पेज खुला समीर लाल जी का…
सत्यानाश! हमें पहले ही समझना चाहिए था कि आज कनाडा में ही सही, है तो आदमी जबलपुरिया ही; कहाँ लाके मरवाया है बन्दे ने…! आज ही इन्हें ये वैराग्य व्यापना था…!
जो लिखा दिखा, उसमें से भी जो-जो बोल्ड में था - वही पढ़ लिया गृहलक्ष्मी जी ने। सो आप भी देखें कि क्या लिखा था -
"…निंदिया न आये-जिया घबराए……
…इंसान अध्यात्म की तरफ भागता है भयवश…
…आज मजबूरी है, पाप कर्मों के बोझ से खुद को अकेले में उबारना…
…अब तो एक चाहत और जुड़ गई कि किसी तरह नैय्या डूबने से बची रहे…
…खुद को कब नीचा दिखा सकते हैं खुद की नजरों में?…
…क्या पाप, क्या पुण्य, कैसा मुक्ति मार्ग?…"
मैडम बोलीं - "ये पहुँचे हुए तो लग ही रहे हैं। संगत ये कर रखी है, लड़के को क्या सिखाओगे? चलो और पेज खोलो"…
अविनाश वाचस्पति ने लिख रखा था "रम" के बारे में - कि "रम की मौजूदगी की बानगी देखिए- बेशरम में - धरम में - गरम में - मरम में - चलें पीनें!"
यानी…लगता है कि मुहूर्त ही खराब है आज…
अब कुछ बोलीं नहीं मैडम, घूरते हुए पैर पटक कर माता जी के कमरे में चली गईं।

हम समझ गए कि अब कुछ नहीं हो सकता। अब कोई ब्लॉग दिखाने या बज़-बज़ाने से फ़ायदा नहीं मगर फिर जब देखा कि मैडम संध्या-भ्रमणातुर हो रही हैं तो चुपचाप साथ निकल लिए। भ्रमणादि से निवृत्त हो आए, लौट कर वो किचेन में और हम चुपके से लैपटॉप पर फिर शुरू हुए।
फिर देखा बज़…तो अब तक ज्ञानदत्त पाण्डेय जी लिख चुके थे …लत के बारे में, और संदर्भ दे चुके थे समीर लाल जी का, पक्की कर चुके थे अविनाश वाचस्पति जी और ये सब देखते हुए हम अन्य बोलागीरों के बोल-वचन देखने निकल पड़े…
एक ब्लॉग पसन्द आया, फिर फ़ॉलो करने लगे कि मैडम चुपके से पीछे से कब देखने आ गयीं पता ही नहीं चला…
मामला इस बार और भी संगीन हो गया जब उन्होंने ये देखा कि अब हम पुरुषों का भी अनुसरण करने लगे हैं।
ज़्यादा कुछ नहीं कहा उन्होंने इस बार सिर्फ़ "थू-थू" करके चली गईं वहाँ से और बोलचाल बन्द कर दी। जाने क्या-क्या शिकायत तो माता जी से करेंगी…
मगर आज नाराज़ हैं सो माताजी के ही कमरे में सो रही हैं और हम मौक़ा पा कर फिर से जुटे हैं कि पूछ तो लें जनमत से और अपनी तकलीफ़ भी बता लें… अब क्या बताएँ - कैसा कैसा लगता है इस ब्लॉगियाने के चक्कर में पड़कर। आप ख़ुद समझदार हैं – बताएँ हम क्या करें, ब्लॉगरी छोड़ कर ख़ुद को "सुधार" लें, या फिर गुरू पाण्डेय जी के घर ले जा कर भाभी जी से समझवाएँ, या फिर…
अब हम कइसे - का करें? छुटती नहीं है काफ़िर ब्लागरी लगी हुई
इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


12 comments:

शारदा अरोरा said...

रोचक लिखा है ...आप कहेंगी या कहेंगे कि हमारी जान पर बनी है ..और आप रोचकता तलाशिये !

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत रोचक! आशा है अपनी पत्नीजी का ब्लॉग भी जल्दी खुलवायेंगे आप। तब दोनो कम्प्यूटर पर होंगे और किचेन में सब्जी के जल जाने की गंध आयेगी! :)

ePandit said...

बहुत खूब, एक ब्लॉग भाभी जी का भी खुलवा दें फिर कोई समस्या न होगी। जिसकी न फटे बिवाई...

अविनाश वाचस्पति said...

खूब सच कही आपने

प्रवीण त्रिवेदी said...

बढ़िया तो यही है कि आप देविओं की ब्लॉग फोल्लो करते रहें .....पुरुषों का पीछा करने से तो यही ज्यादा बेहतर रहेगा !
भाभी जी कोई ज्यादा दुखी ना रहेंगी !

Udan Tashtari said...

हमें खाने पर आने का आमंत्रण दें..बाकी भाभी जी का ब्लॉग खुल जायेगा, इसकी गारंटी. :)

मस्त लिखा है, आनन्द आया. बाकी आप झेलो.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

एक ब्लागर मीट करवा दीजिये.. वही सूक्ष्म जलपान टाईप.. ये सारे लोग जिनके आपने नाम लिये, दौडे दौडे पहुच जायेन्गे आपके पास.. :)

और मुफ़्त की एक सलाह - आप भाभी जी को दूर क्यू रखते है.. कुछ अगर गलती से अच्छा लगे, तो उन्हे भी सुनाईये और उनसे भी लिखवाइये.. :)

PD said...

अभी तो एक गाना याद आ रहा है.. "हिल्ले ले झकझोर दुनिया.. हिल्ले ले झकझोर.."
अब अपने पोस्ट से कोरिलेट करने की कोशिश मत कीजियेगा.. हर बात मतलब की ही हो ये जरूरी तो नहीं.. :)

प्रवीण पाण्डेय said...

शर्तिया इलाज ।
समस्या आपकी ब्लॉगरी से नहीं, आप कुछ भी नया करते, घेर लिये जाते ।
समस्या यह है कि जब आपके पास अतिरिक्त समय था जीवन में तो उसका पहला अर्ध्य श्रीमती जी को अर्पित क्यों नहीं किया । क्रोध इसी का है और फूट हर ओर से रहा है ।
आपको चाहिये था कि ब्लॉग सेशन प्रारम्भ करने के पहले एक अदद प्याला चाय बना कर पिला देते । नारी मन इतना ही चाहे ।

After thought
गब्बरीय मन होता तो कदाचित कह भी सकता था कि जब तक तुम्हारी बसन्ती चाय चलेगी, की बोर्ड पर तुम्हारी साँस चलेगी बीरू ।

अविनाश वाचस्पति said...

ब्‍लॉगर मिलन करवाने के लिए सेवाएं प्रस्‍तुत हैं।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

After thought
गब्बरीय मन होता तो कदाचित कह भी सकता था कि जब तक तुम्हारी बसन्ती चाय चलेगी, की बोर्ड पर तुम्हारी साँस चलेगी बीरू ।


हा हा हा..

Sanjeet Tripathi said...

vakai rochak.
ab aap gyaan dadda aur sameel laal ji ko guru banayenge to vakai aur kya hal hoga aapka......
praveen pandey jee ki salaah par dhyaan diya jaye
;)