ज़िन्दगी कल रही, रही - न रही !
बात का क्या कही, कही - न कही !
आँख में रोक मत ये दिल का ग़ुबार
कल ये गंगा बही, बही - न बही !
मैल दिल का हटा, उठा न दीवार
कल किसी से ढही, ढही - न ढही !
तेरी कुर्सी को सब हैं नतमस्तक
कल किसी ने सही, सही - न सही
अहम् की आज फूँक दे लंका
कल ये तुझसे दही, दही - न दही !
हिमान्शु मोहन
इब्तिदा-आग़ाज़-शुरूआत-पहल
2 comments:
एकहार्ट टॉले की पुस्तक The Power of Now मानो कविता में साकार हो गयी हो!
बहुत सुन्दर। सोचने को बाध्य करती। !
बहुत अच्छे , बात कही ,कही न कही
सुखनवर , विचार कॉपी कर लेना ....ये भी खूब रही चोरी करेंगे पर कह कर |हमें भी पता है कि उधर एक कवि की यानि अपनी ही बिरादरी की रूह है |आपने बेबाक होकर अपने विचार रखे ,अच्छा लगा , अपना दिल भी तगड़ा हुआ , धन्यवाद |
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