ज्ञानदत्त जी के कोंहड़े की जवानी को देखकर हमारे टमाटर को उसकी जवानी असमय ही छोड़ गई। देखिए तो ज़रा कैसा मुँह निकल आया बेचारे का…
ज़माना ही ऐसा है कि कोंहड़ों के आगे टमाटरों की यही नियति हो गई है…
मीर तक़ी 'मीर' ने ये शेर लगता है ऐसे ही किसी टमाटर की सोहबत में कहा होगा -
"यूँही शेवा नहीं कज़ी अपना
यार जी टेढ़े-बाँके हम भी हैं"
शेवा=शारीरिक गठन, ढाँचा…बोले तो चेसिस (शैसी…शुद्धता से)
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