ये बताना ज़रूरी है कि इस पोस्ट का पूरा आनन्द तभी मिलेगा अगर आप ने ज्ञानदत्त जी की पोस्ट पर यह चित्र ही न देखा हो, पोस्ट पढ़ी भी हो…
महिला-श्रम-शक्ति को समर्पित रचना
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कोई है, जो सुबह से शाम तलक जलता है
जुलूस बादलों का जा के तब निकलता है
औरतें खटती हैं, पिटती हैं, अब भी जलती हैं
तब कहीं जा के ज़माने का पेट पलता है
ये क़ायनात अधूरी है बिना जिस औरत
आगे निकले तो बहुत मर्द का दिल जलता है
साज़िशें रचती है औरत ही औरतों के खिलाफ़
मर्द का दिल तो बात-बात पर पिघलता है
जो जहाँ-जिसका भी चाहे, बदल दे मुस्तक़बिल*
उसी औरत का देखें वक़्त कब बदलता है
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मुस्तक़बिल = भविष्य, नसीब
11 comments:
मैं तो सवेरे इस चित्र पर मुग्ध था। पर यह कविता तो और भी मुग्ध कर देने वाली है।
बहुत सुन्दर!
बहुत सुंदर रचना !!
आज के दिन सार्थक चित्र और रचना...प्रभावशाली
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
THESE LINES ARE VERY NICE...
ये क़ायनात अधूरी है बिना जिस औरत
आगे निकले तो बहुत मर्द का दिल जलता
बहुत ही सार्थक और प्रभावशाली रचना…………॥आपकी रचना चर्चा मंच मे ले ली गयी है।
चित्र के टक्कर की कविता ।
bahut hi prabhaav shali rachna..
mere blog par aane k liye bahut bahut shukriya.
कभी कभी जीवन के किसी मोड़ पर बहुत ही संजीदा और खूबसूरत विचारों वाले लोग मिल जाते है '
ठीक उसी मिलन की तरह हिमांशु का मिलना भी है.
आप बहुत अच्छा लिखते हैं चित्रात्मक काव्य ..
आपके ब्लॉग पर आना जैसे बसंत में प्रेमिका से मिलना हो रहा हो
भाई क्या बात है
बहुत बहुत साधुवाद
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