अमलतास फूले हैं… |
मैं रूमान या श्रृंगार-काव्य में दक्ष नहीं।
गीत मेरी विधा भी नहीं। तीन पूरे दिन लगे हैं मुझे, इस गीत को यहाँ तक ला पाने में, और उनके बीच की रातें भी।
जो बिगड़ गया हो, उसे सुधीजन क्षमा करें - श्रृंगार-गीत और रूमान दोनों असहज हैं मेरे लिए, मन बावला हो उठता है और डरता हूँ कि न जाने कब क्या बोल जाऊँ! कहाँ शिष्टता की सीमा लाँघ जाऊँ, यही संकोच असहज किए देता है।
मगर क्या करें?
अब मौसम कोई हो, मन तो प्रकृति के रंग में रंग जाता है न!
आम बौराया, महुआ चुआ, अमलतास फूल गए…
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अमलतास फूले हैं
ॠतु-चुनर सजाई है,
धरती के आँचल में धूप उतर आई है,
कच्ची है उम्र और मीठी सी चितवन है
संकोची नयनों में घड़ी-घड़ी दर्पन है
रूप में किशोरी के आ रही लुनाई है,
अमलतास फूले हैं…
गुलमोहर सुहाग रचे, माँग लाल-लाल किए
बंदनवारी अँबुआ, अमृत-रस थाल लिए
कोयल ने कूक-कूक मंगल-धुन गाई है,
अमलतास फूले हैं…
चन्दा भी जाने क्यों रात-रात जगता है
भीग कर पसीने में अलसी अँगड़ाई है,अमलतास फूले हैं…
साँसों लू चलती, मन महुआ-रस झूमे हैं
काम-ज्वर तपी वसुधा ओस में नहाई है,अमलतास फूले हैं…
अमलतास फूले हैं - ॠतु चुनर सजाई है! |
4 comments:
सुंदर चित्र, सुंदर गान और सुंदर पोस्ट! बधाई!
चित्रात्मक काव्य है या काव्यात्मक चित्र है । क्या कहें ।
हिमांसु जी बहुत बहुत शुक्रिया इस्लाह देने के लिए .....
ग़ज़ल की बारीकियों से परिचित नहीं थी ...यह पहला प्रयास है
आप सब की दुआ रही तो जल्द ही सीख जाउंगी ....
आपतो माशाल्लाह गज़ब लिखते हैं ....
हार - नूपुर - चूड़ी - टिकुली - सिंगार का मौसम
जाने फिर आए - न - आए ये प्यार का मौसम
सुभानाल्लाह .....
रेल वाला हूँ, बहुत कुछ रेल सकता हूँ अभी
पर इशारा सिग्नलों का मानकर अच्छा लगा
कुछ अलग हट के ..अच्छा लगा
और अब ये श्रृंगार वर्णन.....
अमलतास फूले हैं
ॠतु-चुनर सजाई है,
धरती के आँचल में धूप उतर आई है,
अमलतास फूले हैं…
बहुत खूब ...अमलतास इधर भी फूले हैं ....!!
आदरणीय हिमांशु जी वास्तव में आप का देखने का नजरिया और सोच दोनों खूबसूरत है बिलकुल आपकी रचनाओं और आपके ब्लॉग की तरह
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
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