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Saturday, May 1, 2010

औरत : आज 01-मई की सुबह, ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की 30 अप्रैल की पोस्ट से प्रेरित, आभार सहित

यह श्रम दिवस पर श्रम को समर्पित एक पोस्ट है, जो ख़ासकर महिला श्रम के नाम है। सुबह-सुबह ज्ञानदत्त जी की गंगा तट की घुमक्कड़ी से जन्मी 30 अप्रैल की पोस्ट को देखा, यह रचना तैयार हो गयी, मगर दिन भर बिजली की आँखमिचौली से पोस्ट करने का सुअवसर नहीं मिला। जो अच्छा न लगे वो नालायकी मेरी। प्रेरणा औरत। आभार ज्ञानदत्त जी का, और अग्रिम।
ये बताना ज़रूरी है कि इस पोस्ट का पूरा आनन्द तभी मिलेगा अगर आप ने ज्ञानदत्त जी की पोस्ट पर यह चित्र ही न देखा हो, पोस्ट पढ़ी भी हो…


महिला-श्रम-शक्ति को समर्पित रचना
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कोई है, जो सुबह से शाम तलक जलता है
जुलूस बादलों का जा के तब निकलता है


औरतें खटती हैं, पिटती हैं, अब भी जलती हैं
तब कहीं जा के ज़माने का पेट पलता है


ये क़ायनात अधूरी है बिना जिस औरत
आगे निकले तो बहुत मर्द का दिल जलता है


साज़िशें रचती है औरत ही औरतों के खिलाफ़
मर्द का दिल तो बात-बात पर पिघलता है


जो जहाँ-जिसका भी चाहे, बदल दे मुस्तक़बिल*
उसी औरत का देखें वक़्त कब बदलता है
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मुस्तक़बिल = भविष्य, नसीब
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11 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मैं तो सवेरे इस चित्र पर मुग्ध था। पर यह कविता तो और भी मुग्ध कर देने वाली है।
बहुत सुन्दर!

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना !!

मीनाक्षी said...

आज के दिन सार्थक चित्र और रचना...प्रभावशाली

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....

Sumit Pratap Singh said...

THESE LINES ARE VERY NICE...
ये क़ायनात अधूरी है बिना जिस औरत
आगे निकले तो बहुत मर्द का दिल जलता

vandana gupta said...

बहुत ही सार्थक और प्रभावशाली रचना…………॥आपकी रचना चर्चा मंच मे ले ली गयी है।

प्रवीण पाण्डेय said...

चित्र के टक्कर की कविता ।

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut hi prabhaav shali rachna..

mere blog par aane k liye bahut bahut shukriya.

BODHISATVA said...

कभी कभी जीवन के किसी मोड़ पर बहुत ही संजीदा और खूबसूरत विचारों वाले लोग मिल जाते है '
ठीक उसी मिलन की तरह हिमांशु का मिलना भी है.
आप बहुत अच्छा लिखते हैं चित्रात्मक काव्य ..
आपके ब्लॉग पर आना जैसे बसंत में प्रेमिका से मिलना हो रहा हो
भाई क्या बात है
बहुत बहुत साधुवाद

Paise Ka Gyan said...

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Paise Ka Gyan said...

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