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Monday, April 26, 2010

सार्थक क़दम

 आज कुछ सार्थक प्रयास नज़र में आए। ज़रूरी लगा कि उन्हें साझा किया जाए और ये कोशिश की जाए कि इनकी गूँज जाए ज़रूर, बाक़ी मेरा पैग़ाम जहाँ तक पहुँचे।
Pix0595पहला प्रयास तो लगा एक डाक में मिला लिफ़ाफ़ा, दक्षिण पूर्व रेलवे से (चित्र बाएँ)।
एक आम लिफ़ाफ़ा जो सरकारी डाक में प्रयोग में लाया जाता है, वह इससे लगभग तीन गुना बड़े आकार का होता है, जबकि अधिकांश पत्र इस आकार के लिफ़ाफ़े में भेजे जा सकते हैं।
हो सकता है कि इस प्रयास को पर्याप्त प्रचार मिला हो, बहुत प्रोपेगैण्डा हुआ हो, हो सकता है प्रचार न भी मिला हो।
 Pix0594
आज मेरी नज़र से यह लिफ़ाफ़ा पहली बार गुज़रा तो मुझे इसे साझा करना ज़रूरी लगा कि शायद और भी कई लोगों को यह प्रेरित कर सके, ऐसे ही और प्रयासों के लिए।
यह अपारम्परिक आकार काग़ज़ की बचत और तदनुरूप पर्यावरण के प्रति बेहतर तो है ही, जहाँ तक हम काग़ज़ को पूरी तरह हटा नहीं पा रहे। तुलनात्मक आकार के लिए दाएँ का चित्र देखें।
दूसरा सार्थक प्रयास है राजभाषा समिति की मंत्रालय के स्तर पर हुई बैठक के सार–अंश। यह ध्यान तुरन्त गया कि समिति के सम्मनित सदस्य / सदस्या तो कह रहे हैं कि कठिन शब्दों के प्रयोग से बचा जाय, मगर हमारे हिन्दी के रंग में रंगे कर्मी निर्देश लिख-बाँट रहे हैं –“क्लिष्ट  शब्दों का प्रयोग न हो”। Pix0597
भाई मेरे, ‘क्लिष्ट’ अपने आप में ही क्लिष्ट नहीं है क्या? यहाँ ‘कठिन’ से भी काम चल सकता था, जो आसानी से समझ में आता है। नहीं तो क्लिष्ट को दुरूह कहें और अधिक बोधगम्य शब्दों का प्रयोग कह कर और भी मुश्किल बना दें। अगर ‘मुश्किल’ ही लिख दें तो क्या हर्ज़ है?
तीसरा सार्थक क़दम, जिसके बारे में कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं, चित्र सब कुछ स्वयम् ही कह रहा है, नीचे देखें-
Pix0592
चित्र थोड़ा और बड़ा होता तो और आसानी से समझ में आता, मगर मैं थोड़ी सी व्याख्या कर देता हूँ सहायता के लिए। सबसे ऊपर एक पोस्टर है, जिसका कैप्शन है - “आपके बच्चे का भविष्य आपके हाथ में है”। (यहाँ बच्चे को ही हाथ में दिखाना विज्ञापनीय टोटका ही लगता है)
बाक़ी पोस्टर के नीचे, उसके बाएँ, फिर और बाएँ देख कर समझा जा सकता है। वैसे मुझे लग रहा है कि भले ही किसी का भविष्य किसी के भी हाथ में हो, जान और वर्तमान तो शायद इस वाहन के चालक के हाथ में ही है, जो सवार हैं उनका भी, और जो आगे-पीछे-सामने चल रहे हैं उनका भी।
चौथा सार्थक क़दम मैं उठा रहा हूँ, अपनी बक-बक बन्द करके।
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4 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आपकी यह पोस्ट जानकारी सावधानी और रोचकता लिए हुए हैं.
बढ़िया लगा संगम तीरे.

नीरज गोस्वामी said...

सार्थक बातें करती एक सार्थक पोस्ट...साधुवाद..
नीरज

Padm Singh said...

अरे ई टेम्पो देख के तो अपने इलाके की याद आ गयी ७०० किलोमीटर दूर बैठा हूँ... आजकल कमांडरों को इन छोटे हाथियों ने बाईपास कर दिया है... हमेशा की तरह सार्थक और उपयोगी पोस्ट ...
फोटो खीचने में बड़ी तत्परता दिखाई है.. कमाल है

Paise Ka Gyan said...

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