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Tuesday, March 16, 2010

नवरात्रि : देवी दर्शन और पूजन

ज़रा ध्यान से देखिए।
कुछ दिखा?
ज़रा चित्र पर क्लिक कीजिए - शायद पूरे आकार में देखने पर दिखे-
यक़ीन कीजिए, मैं अंधविश्वास नहीं फैला रहा।
मैं तो विश्वास जगाना चाहता हूँ।
कोशिश कर के देखिए - हाँ, अब जो धुँधली सी आकृति आप को दिख रही है, यही देवी का वह रूप है जिसके मुझे दर्शन हुए। इसके पीछे ही देवी का एक अन्य रूप भी है, जो मुझे तो दिख रहा था मगर कैमरे की नज़र में दर्ज नहीं हो पाया। अन्य चित्र जो कुछ दिखा रहे हैं वह कम्प्यूटर बाबा की महिमा और संपादन का करिश्मा है।

यह तीन-चार साल की छोटी सी कन्या है। प्रचलन के अनुसार नवरात्रि के दौरान इसे भी शायद देवी के बालरूप में पूजित किया जाएगा और जलेबी-दही, पूड़ी-हलवा आदि खिला कर लोग अपनी श्रद्धा व्यक्त करेंगे।
पीछे खड़ी है इसकी बड़ी बहन, जो अपने इस घर में, सड़क के नल से पानी भर कर रख रही थी, जो रोशनी की कमी से दिख नहीं रही यहाँ। उसकी उम्र लगभग आठ-एक साल रही होगी। मैं सड़क पर खड़ी गाड़ी में बैठा प्रतीक्षा कर रहा था अन्य साथियों की।

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बड़ी बहन लगातार सड़क के नल से घर के विभिन्न बर्तनों में पानी भर कर रखती जा रही थी और साथ-साथ सिखाती जा रही थी गिनती - अपनी इस नन्हीं-मुन्नी बहन को - पहले 1 से 100, फिर वन टू हण्ड्रेड, और फिर ए, बी, सी …
बड़ी बहन पहले बोलती थी - "इक्यासी" और छोटी दुहराती थी-"इक्याशी"।
बीच में एक बार इस गुड़िया ने कहा - "दीदी! हम भी पानी भरें?" तो उसने जवाब दिया- "तुम अगर ठीक से पढ़ोगी, तो कभी पानी भरने-बर्तन माँजने का काम नहीं करना पड़ेगा।"
छोटी बोली- "लेकिन हम तुम्हारी मदद का काम करके भी तो पढ़ सकते हैं? तुम भी तो स्कूल जाती हो"। बड़ी बहन का प्रयास और छोटी की सीखने की ललक, साथ ही हाथ बँटाने का उत्साह…
रोशनी बेहद कम थी उस घर में, मगर मुझे लगा कि चारों ओर उजाला फैल गया है और यहीं पर मुझे लगा आज बालरूप में मुझे देवी ने दर्शन दिए।

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अब लगा तो कह दिया।
ऐसी बहक और सनक भरी बातें मेरी आदत में शुमार हैं, माफ़ कीजिएगा अगर आपका क़ीमती वक़्त बर्बाद किया या आपको उद्विग्न किया हो। इसलिए भी कहा कि जो पढ़े-सुने उस पर भी देवी की कृपा हो और उसे सद्-बुद्धि भी मिले जिससे कम से कम वह एक कन्या को शिक्षा दिलाने में सहायक सिद्ध हो। हम में से कोई एक भी अगर अपने ख़ाली वक़्त या धन का उपयोग करके किसी कम साधन-संपन्न एक भी बालिका की शिक्षा में सहायक हो पाए तो शायद यह भी देवी की उपासना ही हो! कम साधन संपन्न ही क्यों- मेरा तो मानना है कि हिन्दुस्तान में किसी भी बालिका को शिक्षा दिलाना या उसमें सहायता करना, यहाँ तक कि अगर आप किसी को छात्रवृत्ति के बारे में बता दें या उसको किसी फ़ॉर्म के जमा करने में सहायक हो सकें, तो यह भी पूजा के समान ही है।
आपको नव-"शोभन"-संवत्सर की बधाई!

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