साथी

Saturday, March 20, 2010

शुक्रिया

आप सबका शुक्रिया, सराहने और बढ़ावा देने के लिए। तो वह शेर भी पेश है जिसका मैंने शीर्षक के तौर पर इस्तेमाल किया था-
दर्दो-राहत, वस्लो-फ़ुरकत, होशो-वहशत क्या नहीं 
कौन कहता है कि रहने की जगह दुनिया नहीं ?
उम्मीद है कि दुनिया से आज़िज़ फ़लसफ़ेबाज़ शायरी के बजाय दुनिया के लिए लगाव का ये शे'अर भी आपको पसन्द आएगा।
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1 comment:

वीनस केशरी said...

अरे साहब आप भी गजल गोई का शौक रखते हैं

कभी मिलिए तो रूबरू आपसे कुछ सूना जाये :)