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Saturday, May 1, 2010

मुफ़्लिस की नयी ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी

जब कोई ग़ज़ल अच्छी लगती है तो उसी बह्र में वहीं कुछ कहने की कोशिश करता हूँ के ये टिप्पणी भी हो जाए और तोहफ़ा भी नज़राने और शुकराने के तौर पर। कभी-कभी ग़ज़ल को ला के पोस्ट भी बना देता हूँ। कितनी पुर्जियाँ तो यूँ ही  पा'माल हो गईं। आप सब का शुक्रिया कि आप की बदौलत कम्प्यूटर पर लिखने से बाद में अगर चाहूँ तो कुछ बचा खुचा मिल तो जाएगा। तो मुफ़्लिस साहब की ताज़ा ग़ज़ल पर टिप्पणी -

हमने आकर अब देखा है
बह्रो-वज़्न ग़ज़ब देखा है

ग़ज़ल कुआँरे हाथों मेंहदी
रचने सा करतब देखा है

ढाई आखर पढ़ते हमने
क़ैस* सर-ए-मकतब* देखा है

शौक़ बहुत लोगों के देखे
हुनर मगर ग़ायब देखा है

टूटी खाट, पुरानी चप्पल
शायर का मन्सब* देखा है

मुफ़्लिस के अंदाज़े बयाँ में
अपना वज्हे-तरब* देखा है

जब-तब हमने सब देखा है
मत पूछो क्या अब देखा है

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सर-ए-मकतब=पाठशाला में, क़ैस=मजनूँ;
वज्हे-तरब=प्रसन्नता/आनन्द का कारण, मन्सब=जागीर, एस्टेट
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मुफ़्लिस साहब की ग़ज़लगोई पसन्द आई, सो ये टिप्पणी दे रहा हूँ। इसे ले जाकर अपनी पोस्ट भी सोचता हूँ बना दूँ के लोग देख सकें…
बहुत अच्छे, जनाब मुफ़्लिस साहब! जारी रहिए…
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5 comments:

Udan Tashtari said...

ग़ज़ल कुआँरे हाथों मेंहदी
रचने सा करतब देखा है


-बेहतरीन कहा, जनाब!!

मुफलिस साहेब की गज़ल का लिंक तो दिजिये..

Dr.Dayaram Aalok said...

गजल पढने में मजा तो बहुत लेकिन उर्दू शब्दों को समझने में कठिनाई होती है,अपने हिसाब से कठिन शब्दों के हिन्दी मायने भी लिखेंगे तो सहूलियत होगी।

Dr.Dayaram Aalok said...

गजल पढने में मजा तो बहुत लेकिन उर्दू शब्दों को समझने में कठिनाई होती है,अपने हिसाब से कठिन शब्दों के हिन्दी मायने भी लिखेंगे तो सहूलियत होगी।

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह ।

प्रवीण पाण्डेय said...

पहले सोचा कि काव्यात्मक टिप्पणी दें फिर लगा कि मखमल में टाट का पैबन्द हो जायेगा । वाह अपने टाट को नहीं, आपके मखमल को कहा ।