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Thursday, April 29, 2010

साहित्य, खम्बे और वफ़ादारी

आज जो समीर 'लाल' जी ने उड़नतश्तरी पर सर्रर्रर्रर्राते हुए हमारी इज़्ज़त बढ़ाई है, अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट में हमारा ज़िक्र किया है और उस पर सैकड़ों टिप्पणी आ रही हैं धकाधक, उसके लिए हम शुक्रिया 'अदा' करना चाहते थे, मगर जी भर के कर नहीं सके, सो छोटी टीप दे के चले आए।
आपने समीर लाल जी की पोस्ट पढ़ी आज, खम्बे वाली?वैसे तो हम पूरी बात वहीं टिपिया देते हैं, मगर आज मजबूरी है। अब खम्बे से सीधा रिश्ता है कुत्तों का, मगर पता नहीं पुरनिए क्यों हर बार खम्बों का ज़िक्र आते ही बिल्ली ढूँढने लगते हैं। अब खम्बा कुत्ते का, और ज़िक्र बिल्ली का, तो नोच-खसोट तो मचनी ही है।
ऐसा लगता है जैसे वफ़ादारी के ऊपर ईर्ष्या को तरजीह देते रहे हों ये पुरखे।
समीर जी बिजली ला रहे थे, हम ने कमेण्ट मारा - झूठ मूठ में बिजली जाने की धमकी दी, और बिजली चली गयी। गयी तो अब तो लिख के रखे ले रहे हैं, अपनी पोस्ट पर ही ठेल देंगे, क्योंकि समीर जी के हियाँ तो टिपियाने की ठेला-ठेली मची होगी।
अब देख लीजिए, हम भी पुराने ब्लागिए हो चुके हैं। करीब एक-बटा-छ्ह साल से हैं हियाँ यानी एक ॠतु बीत गयी बिलगते-बिलगते।
तो हम आए हैं बिलगने के खेल में, मगर जिसकी तरफ़ जाते हैं एक न एक खम्बे का इश्तेहार लगा मिलता है। तीसरा, चौथा, पाँचवाँ तक तो हमीं देख आए हैं। बड़ी भीड़ भी है। खम्बे का बड़ा महत्व है इस ब्लॉग की दुनिया में।
बिजली का भी है, भले ही थोड़ी देर उसके बिना चल जाय।
अब इतने ज्ञानी पुरुष हैं समीर जी सो वही देख पाए, खम्बे, बिजली और वफ़ादारी का परस्पर संबंध। बाकी दुम हमारा ज़ाती मामला है, सो उसके बारे में उन्होंने लिहाज़ रखा और कुछ नहीं बोले।
वैसे हम अभी ठीक से समझ नहीं पाए हैं कि समीर लाल जी 'लेखा सलाहकार' हैं या 'अर्थ सलाहकार'। हमें तो दोनों लगते हैं, काहे से कि उनके लेखे में अर्थ भी रहता है।
बाक़ी लोगों को उनकी बात में पॉज़िटिव नज़र आता है - थिंकिंग या एटीट्यूड जो भी नज़र आता है, मगर हमें तो आजतक यही समझ में आया है कि हे ईश्वर! किसी भी तरह के टेस्ट में कोई 'पॉज़िटिव' ना निकले! नहीं तो बड़ा सदमा लगता है, चाहे मलेरिया हो चाहे लवेरिया।
मगर उनकी जो सहृदयता है, निकटता है, जो लगाव है हमसे, वो ज़रूर समझ गए हैं हम थोड़ा-थोड़ा। बड़ा नज़दीकी मामला निकला हमारा उनका।
वो जबलपुरी, हम कानपुरी।
वो लेखक 'गोरखपुरी', हम शायर 'इलाहाबादी'।
वो चच्चा का सामान आजकल बज़ पे ला रहे हैं, हम चच्चा के लिए च्-च् कर रहे हैं।
(चाहते तो थे चा-चा-चा करना, मगर अब नहीं करेंगे क्योंकि पद्मसिंह पुलिसिया गए हैं, राजीव ई-गुरू को दू ठो लाफ़ा लगाने की सिफ़ारिश लिए घूम रहे हैं और रिमाण्ड माँगे मिल नहीं रही)
उधर समीर जी साहित्यकारों का ज़िक्र कर रहे हैं, इधर हम वफ़ादारी दिखाने की फ़िक्र कर रहे हैं।
वो एमपी, हम यूपी।
वो ज़मींदार, हम पट्टीदार।
वो मालिक, हम पट्टेदार।
वो अर्थ-सलाहकार, हम व्यर्थ-सलाहकार…
चाहिए सलाह किसी को?
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7 comments:

Udan Tashtari said...

अरे प्रभु...क्या कहें!! जय हो आपकी!! :)

डॉ महेश सिन्हा said...

अफवाहों से सावधान

Padm Singh said...

अब आपने मेरे जिक्र किया इसके लिए हम भी आपका शुक्रिया करना चाहेंगे ...(क्यों कि आज मैंने टेस्ट किया है और आप पोजिटिव निकले)

आपके सहयोग से आज मैंने अपना ब्लॉग थोड़ा सा सुधारा है ...एक दो दिन में ठीक कर लूँगा ... जी हल्का सा लग रहा है ...

बहुत शुक्रिया ...

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

एक ठो हम भी कमेन्ट पोस्टें का !!
अच्छा कल करेंगे. :)

प्रवीण पाण्डेय said...

खम्भे के बहुत महत्व हैं पर उसे साहित्यिक क्षेत्र में उतारने का पूरा श्रेय श्वानों को जाता है । श्वानों का खम्भों के प्रति आकर्षण कई कवियों की कल्पना को नया आयाम दे चुका है, लेखकों की भी । खम्भे जैसी सौन्दर्यहीनता व श्वान जैसी अगेयता और क्या गुल खिलायेगी..... सुनते हैं ब्रेक के बाद
आप को ले चलते हैं साहित्यिक डॉक्टर के पास ( क्या नाम है जी )

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

जम के छापिए जी.
आपने तो बज़ और ब्लॉग की दुनिया को एकाकार करने की ठान रखी है क्या !
इन ब्लॉग वालों को भी तो पता चले हम बज़ वालों की खुराफातें.
हा हा हा

Paise Ka Gyan said...

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