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Saturday, May 15, 2010

ब्लॉगरी में महानता के मानक : संदर्भ समसामयिक प्रश्न

हाल में महानता के मानक चर्चित रहे। अब अगली कड़ी में जैसे ही ब्लागरी में महानता के मानक तय करने की बात आई, लोग मूल प्रश्न से भटके हुए लगते हैं। यहाँ तक कि प्रश्न स्वयम् भी।
ज्ञानदत्त जी की मानसिक हलचल में प्रश्न उठा कि कौन बड़ा ब्लॉगर, और शुरू हो गए पत्थर चलने, सिर-फुटव्वल।
मैं अभी तक यही सोच रहा था कि “बड़ा” तय करने के आधार कोई बताएगा, तब खेल शुरू होगा। बिना नियम बताए तो कोई मैच नहीं हो्ता, न कोई शास्त्रार्थ्। और अपनी पसंद के आधार पर ही अगर तय करना हो तो फिर तो यह निजी मामला हो गया। यदि मतदान करना हो, तो चुनाव घोषणापत्र चाहिए, और फिर उस पर उम्मीदवारों की चर्चा।
अक्सर तो यही होता है, पर यहाँ कोई समिति भी नहीं बनी है जो सर्व-सम्मति से ऐसे नियम तय कर दे। कमाल यह है कि इण्टरनेट चल रहा है, खुले में, मगर हिन्दी-ब्लॉग-जगत में मूल्यांकन क्या केवल व्यक्तिगत सुविधा के आधार पर होगा?
मेरे अपने सुझाव हैं, जिनके तहत मुझे लगता है कि ब्लॉग या ब्लॉगर का क़द नापने की कोशिश में जो बातें महत्वपूर्ण रहेंगी, उनमें से कुछ बिन्दु हैं -
Rose-Petals-redz 1) ब्लॉग पर कुल हिट्स
2) ब्लॉग पर कुल टिप्पणियाँ
3) ब्लॉग की उपयोगिता
4) ब्लॉगर की सामाजिकता और व्यावहारिकता (वैसे यह न भी हो तो भी लोग अंत में अपने पसंदीदा ब्लॉगर को ऊँची रैंकिंग देंगे ही)
5) ब्लॉग की कुल संख्या और वर्गीकरण – जैसे कोई कविता, कहानी, चर्चा, लेख और तकनीकी सहायता आदि में से किस-किस कोटि में सक्रिय है। अब एक दर्शन-फ़लसफ़े पर बने ब्लॉग की तुलना चुटकुलों के ब्लॉग से करना तो असंगत ही होगा न?
6) ब्लॉग-सामग्री की गुणवत्ता – यह कोटि के अनुरूप ब्लॉग पाठकों द्वारा ही 1 से 10 के पैमाने पर अंकित की जानी हो।
7) ब्लॉग का अद्यतन किया जाना – दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक या अनियमित
8) ब्लॉग पर सबके लिए उपयोगी सामग्री जो कॉपीराइट उल्लंघन से परे, नि:शुल्क डाउनलोड हो सकती हो या चि्त्र, विजेट, टेम्प्लेट आदि जो अन्यत्र प्रयुक्त हो सकें।
यह बाध्यता भी हो कि मूल्यांकन के लिए मत उसी ब्लॉग-पाठक का गिना जाय जो मूल्यांकन अवधि में कम से कम पाँच बार, या प्रति पोस्ट एक बार, या प्रतिमाह कम से कम तीन बार (या ऐसी ही कोई सर्वसम्मत संख्या) तक कम से कम उस ब्लॉग पर जा कर टिप्पणी कर आया हो। बिना पढ़े या टिपेरे कैसा मत?
जो भी हो, अगर खेल होना है, तो नियम तय किए जाएँ, शुरू करने के पहले।
अब मेरे प्रश्न स्वयं से ही हैं कि-
1) क्या ब्लॉगरी स्वान्त: सु्खाय ही नहीं होनी चाहिए?
2) ज़्यादातर लोग जो ब्लॉगरी में लगे हैं, क्या वे अपनी किन्हीं महानता की अधूरी रह गयी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आए हैं, या बस अच्छा लगता है इसलिए? प्रोफ़ेशनल ब्लॉगर को यकीनन शौकिया ब्लॉगर से अलग देखना होगा।
3) क्या विभिन्न रैंकिंग्स जो दी जा रही हैं, तरह-तरह की सेवाओं द्वारा, वे ब्लॉगरों के अहम् की मानसिक तुष्टि के लिए पर्याप्त नहीं हैं?
शायद कुछ अन्तराल पश्चात् मैं अपनी राय स्थिर कर सकूँगा, और तब उत्तर भी ढूँढ लूँगा।
और अन्त में, अपनी व्यक्तिगत राय, जितनी स्थिर है, उसे भी व्यक्त कर दूँ।
मैं समझता हूँ कि मेरे लिए अच्छा पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं है, जिसके लिए अच्छे से अच्छे रचनाकारों की अच्छी से अच्छी कृतियों से बाज़ार, पुस्तकालय पटे पड़े हैं, उन्हें पढ़ने के लिए पूरा जीवन कम है और यहाँ तक कि नेट पर भी रुचि के अनुरूप सामग्री उपलब्ध है, नि:शुल्क भी। ऐसे में मुझे कोई मुग़ालता नहीं अपने लेखन को लेकर, न दूसरों के।
Rose_Petalsमेरे लिए ब्लॉगरी में ज़्यादा महत्व की बात है आपसी सम्वाद, अन्तर्कथन और अन्तर्संवाद जो जान है इस नेटीय सामाजिक संरचना की। मेरे लिए दोस्ती और भावनात्मक संबल ज़्यादा बड़ी बात है।
इसी से मैं ब्लॉग पर हूँ, वर्ना किसी के ब्लॉग पर जा कर पढ़ने के बाद टिप्पणी देने की क्या ज़रूरत? क्या मेरे प्रतिक्रिया न देने से लेखन की गुणवत्ता घट जाएगी? नहीं, मगर देने से बढ़ सकती है, सुधार हो सकता है। इसी से जो चटते हैं मेरे साथ चैट पर, वे मेरे दिल के ज़्यादा करीब आ चुके हैं, और उनकी कमियाँ अगर कोई हों तो उनसे मुझे फ़र्क नहीं पड़ता उनकी अच्छाइयों के आगे।
मेरे लिए शुरुआती दौर में भी ऐसा था, और बाद में भी, जो महत्व आपसी संवाद का है, हौसला बढ़ाने वालों का है, वह गुणवत्तापरक लेखन का न है, न हो सकता है। कौन से अध्यापक अच्छे लगते थे – जो स्वयं बहुत उच्च योग्यताधारक थे? या जिन्होंने अपनी कमियों को जीतना सिखाया? या जिन्होंने ख़ुद से ज़्यादा ऊँचाई तक पहुँचाने के लिए अपने शिष्य में उच्चतर योग्यता पैदा की? और उन अध्यापकों से पहले क्या वह माँ, बहन, बड़े भाई, चाचा याद नहीं जो आपकी ग़लती होने पर भी साथ ही खड़े हुए?
आदर्श कुछ भी हों, जो मेरा साथ दे, हर परिस्थिति में - मेरा अपनत्व भी उसी के साथ है, और इस संशयविहीन सोच पर मैं ख़ुश हूँ।
सबकी अपनी-अपनी सोच है, मगर मेरी सोच तो यही है कि -
प्यार तो करते हैं दुनिया में सभी लोग, मगर;
प्यार जतलाने का अंदाज़ जुदा होता है
कोई भी ठोकरें खा जाय तो गिर सकता है,
झुक के जो उसको उठा ले – वो ख़ुदा होता है
ब्लॉगरी की मान्यताएँ और उसूल वास्तविक जीवन से अलग नहीं हो सकते। मुझे यह स्वीकारना पड़ता है कि यदि मेरे अपनों की व्यक्तिगत उपलब्धियाँ कुछ कम भी हों तो भी मैं उन्हीं के साथ रहूँगा, व्यक्तिगत उत्कृष्टता का मोल पारस्परिक सहभागिता में उत्कृष्टता के आगे कम है मेरे लिए।
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(काव्यपंक्तियों के रचयिता:अज्ञात; सभी चित्र गूगल से साभार)
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17 comments:

Kumar Jaljala said...

कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
पुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
1-फिरदौस
2- रचना
3 वंदना
4. संगीता पुरी
5.अल्पना वर्मा
6 शैल मंजूषा

Unknown said...

रोचक

हिंदीब्लॉगजगत said...

ब्लौग जगत में केवल उसी की साख बनी रहती है जो हर आने जाने वाले ब्लौगर को टिप्पणियां देकर पटाता रहे और हर पोस्ट पर टिपण्णी देने का प्रयास करे. 'बहुत सुन्दर', बहुत बढ़िया', अच्छा लगा', सार्थक प्रयास', ' अब यहाँ बार-बार आना पड़ेगा', 'बहुत अच्छा लिखते हैं आप', और इसी तरह के सेट पैटर्न पर टिप्पणियां लुटाता रहे.
ऐसे में टिपण्णी प्राप्तकर्ता स्वयं को टिप्पणियों के बोझ तले दबा जानकार कृतार्थ होते रहते हैं और वह होने लगता है जिसे अंधभक्ति या idolatry कहते हैं. जिस व्यक्ति का चिंतन गहन और अध्ययन विषद है उसे यहाँ कोई घास भी नहीं डालता. आप अपना उदाहरण ही ले लें, कितने लोग आते हैं आपके ब्लौग पर? कितने लोग पाठ की विषय-वस्तु से सम्बंधित टिपण्णी करते हैं? और कितने लोग सिर्फ सुन्दर या नाईस लिखकर दफा हो जाते हैं?
ब्लौगिंग अधिकतर लोगों के लिए जीवन का विकल्प बनती जा रही है. अपनी पर्सनल लाइफ में जो व्यक्ति सबसे पीछे रह जाते हैं वे यहाँ आकर या तो खुद को शेर समझने लगते हैं या उत्कृष्ट लेखक होने का मुगालता पाल बैठते हैं. यहाँ बेहतर रचनाकर्म में लगे लोग वे हैं जो संयत और संतुलित व्यक्तित्व के धनी हैं और जो कुछ बोलने-लिखने के पहले चीज़ को पढ़-समझ लेते हैं.

आपके ब्लौग पर कुमार जलजला की टिपण्णी एक और टुच्ची हरकत है उन लोगों की जो इसे अखाड़े का मैदान बनाने में रत हैं. ये शायद श्री समीर लाल के समर्थक हैं लेकिन उनके लेखन या व्यक्तित्व से ये पूरे अनजान हैं. इनका काम है किसी भी तरह यहाँ-वहां जहाँ मौका मिले वहां जाकर अपने ओछेपन के सुबूत देना.
अब ये यहाँ श्रेष्ठ ब्लौगरिन का मत पत्र चिपका कर चले गए हैं. कुछ जलने की बू आ रही है.

मनोज कुमार said...

व्यक्तिगत उत्कृष्टता का मोल पारस्परिक सहभागिता में उत्कृष्टता के आगे कम है मेरे लिए।
उत्तम विचार!

अनूप शुक्ल said...

बड़ा कठिन पर्चा बना डाला भैया!!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

बड़ा ही गंभीर चिंतन है जी !!
आपे का लम्बर अगला है.

Gyan Dutt Pandey said...

मत? याद आता है - जम्हूरियत वह तर्जे हुकूमत है, जिसमें बन्दे गिने जाते हैं तोले नहीं जाते! :)

Smart Indian said...

नक्कारखाने में क्या तूती और क्या तूती की आवाज़. हाँ टिप्पणी के मामले में शीर्ष पर "NICE" वाले हैं इसमें कोई शक नहीं.

alka mishra said...

बड़े भाई ,गलती से मैंने पूरा लेख पढ़ लिया है ,मैं तो आप ही को सबसे बड़ा ब्लॉगर मानूंगी क्योंकि आपकी उम्र १०३ साल है ,बाक़ी किसकी हैसियत है जो आपके सामने खडा हो सके ,
वैसे आप कौन सी जड़ी बूटी खा के १०३ सालों से चुस्त दुरुस्त और तंदुरुस्त हैं ?कृपया बता दीजिये मुझे मैं बड़े तरद्दुद में हूँ

Arvind Mishra said...

आपकी क्राईटेरिया से सहमत ....मैं व्यक्तिवादी हूँ ..इसकी मेरी परिभाषा है -व्यक्ति के रूप में जो अच्छा है /मुझे अच्छा लगता है वह लिखता भले ही कुछ कम अच्छा हो मेरा प्रिय है ......व्यक्ति अच्छा हो ब्लॉगर कुछ कम भी अच्छा तो चल जाएगा -इसका उलट तो मेरी निगाह में मूड मुडा कर गधे की सवारी लायक है ! नाम बताऊँ क्या ?

Udan Tashtari said...

समय लगा पढ़ने में..पढ़ने की आदत कम है न!! :)


क्या नापना, तौलना-लिखते चलिये. बना रहे बनारस!!!

प्रवीण पाण्डेय said...

मेरा ब्लॉग से जुड़ाव इसलिये हुआ क्योंकि मुझे कुछ ब्लॉग मेरे मन की विचारधारा से अनुनादित दिखे । जुड़ाव बढ़ता गया और मैं इसका अंग बनता गया ।
मेरी मेधा प्यास में रहती है टिप्पणियों की जो बहुधा मेरी पोस्टों से अच्छी रहती हैं । मैं और सीखता हूँ । मेरी आस और प्यास अनन्त होकर ही बुझेगी । मेरे द्वारा की गयी टिप्पणियों में मैं अपना मन उड़ेलने का प्रयास करता हूँ । जिन पोस्टों में कुछ कहने को नहीं बचा या मेरी समझ के परे हैं, मैं छोटी पर आदरात्मक टिप्पणी करता हूँ ।
अब इस व्यापार में श्रेष्ठता कैसी और किसकी । विविधता में सभी पुष्प सुन्दर हैं । मेरा मन विद्वता पढ़ना चाहता हूँ तो अनूप शुक्ल जी, भावों में उमड़ना चाहता हूँ तो समीरलाल जी, सरलता व तरलता चाहे तो ज्ञानदत्त जी । इतने वरिष्ठ ब्लॉगर हैं जिनसे प्रतिदिन ज्ञान और भाव लूटता रहता हूँ । युवाओं का उत्साह मुझे पुनः युवा कर देता है ।
वरिष्ठ सदैव समझते हैं कि किसमें कितनी क्षमता है और उसे उभारते रहते हैं । छोटे कहें तो टोकना, बड़े कहें तो उसे समीक्षा कहते हैं । परिवार का मुखिया अपने पुत्रों को अंक देने लगे तो घर का ही गणित बिगड़ जायेगा पर उनको टोकने व सुधारने का अधिकार तो सदैव ही है मुखिया के पास है ।
समस्या तब गुरुतर हो जाती है जब बच्चे मुखिया का सम्मान करना छोड़ दें और अनुशासनहीन हो जायें ।
मानक इस व्यवहार के बनें, ब्लॉग तो बगिया है, सैकड़ों पुष्प खिलेंगे ।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

इन्डीब्लोगर वैसे भी ब्लोगर ओफ़ द मन्थ करवाता रहता है.. और काफ़ी हिन्दी चिट्ठे उसमे रजिस्टर्ड है... वैसे मुझे प्रवीण जी की कही एक बात को कोट करूगा जो मुझे बडी अच्छी लगी:

"समस्या तब गुरुतर हो जाती है जब बच्चे मुखिया का सम्मान करना छोड़ दें और अनुशासनहीन हो जायें ।
मानक इस व्यवहार के बनें, ब्लॉग तो बगिया है, सैकड़ों पुष्प खिलेंगे ।"

Himanshu Mohan said...

एक अर्थ में अच्छा भी रहा, सब वहीं हैं जहाँ थे; बहुतों की मूर्धन्यता और परिपक्वता की कलई खुली इसी बहाने। हमारे जैसे नए-पुरानों का चक्षून्मीलन हुआ।
यहाँ भी जो टिप्पणियाँ आई हैं वो अपनी कहानी अप कहेंगी, जब तक कि कोई उन्हें डिलीट न करे। इस सम्बन्ध में कोई फ़ायदे में रहा हो या नहीं, मुझे एक शे'र कहने का फ़ायदा मिला, अभी जा के सुख़नवर पे लगाता हूँ। देखना न भूलिएगा, शे'र बहुत दिनों बाद कहा है, इस बीच तो घास-कूड़ा ही इकट्ठा होता रहा है।
तब तक आप सब के लिए जाते-जाते दो शे'र अर्ज़ किए जाता हूँ, कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब के, यही समीर लाल जी के ब्लॉग पर भी अर्ज़ कर के आया हूँ-

अब ये आलम है कि हाथों से छुपाए हूँ लहू
मैंने जो पत्थर उछाला था-उसी ने सर छुआ

और

मैं तो छोटा हूँ, झुका दूँगा कभी भी अपना सर
सब बड़े ये तय तो कर लें कौन है सबसे बड़ा!
शुभकामनाओं सहित,

Amrendra Nath Tripathi said...

वह कौव्वाली के बोल हैं न ---
'' इन सारे बखेड़ों से मुझे मतलब क्या ,
मैं तो दीवानी ,
ख्वाजा की दीवानी ! ''
आप बच्चन जी जैसा कुछ और लाते तो
और अच्छा लगता |
पर , कोई बात नहीं , ये समसामयिक प्रश्न हैं और
'कमोडिटी मार्केट' में इनके ग्राहक शब्दों और
वाक्यों की खांच लिए घूम रहे हैं , कुरै देने के लिए |
उनके निमित्त आपने कल्याण-कराऊ धर्म का निर्वाह किया |
हाटानुकूल माल दिया आपने और क्या ! आभार !

Himanshu Mohan said...

@Kumar Jaljala
इन्होंने हमसे तो कुछ कहा नहीं - तो हम भी निकल लेते हैं…
---------------------
वैसे मज़ाक-मज़ाक में काफ़ी लोग आ गए :)
आभार

@Hindiblog Jagat
सहमत तो हम आपसे भी नहीं पूरी तरह, मगर पधारने का आभार।
अब जलने की बू पर त्वरित कार्यवाही करनी चाहिए-
ये लो - जलने की बू तो अब नहीं आनी, पानी डाल आए हैं 5 लीटर डिब्बे से। मगर पता नहीं वो केरॉसिन का कैन कहाँ गया? यहीं तो रखा था।
अब देखिए क्या डाला है, अभी थोड़ी देर में पता चला जाता है…

@सुनील दत्त
@मनोज कुमार
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
@E-Guru Rajeev
@alka sarwat
आभार पढ़ने का और प्रोत्साहन का। अलका जी, आपके कहने से वो 103 साल वाला मज़ाक बन्द कर दिया, काफ़ी दिन चला। आप सब को धन्यवाद पधारने का, और पुन: आने का न्यौता भी… :)


@Arvind Mishra
@प्रवीण पाण्डेय
@Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
आप सब को धन्यवाद पधारने का, आभार पढ़ने का और प्रोत्साहन का। भाई मिश्र जी, आप तो हमारी तरह डीएजी यानी "डाइरेक्ट एक्शन ग्रुप" वाले लगते हैं। तुरन्तै बाँहीं चढ़ावै लगे। आपके साथ रहना पड़ेगा किसी को। मनोज जी तो मृदु स्वभाव के लगते हैं, फिर छोटे हैं, आपको टोक भी न पाते होंगे!
भाई प्रवीण जी, आप ही कुछ ॠषि-सम सामञ्जस्य किए रहें। वैसे इस मामले में आपकी राय से मेरा पूरा इत्तफ़ाक़ है, ये नम्बरों का खेल अपरिपक्व मानसिकता की निशानी है।
पंकज जी, आप द्वारा आज का प्रयोग मुझे तो सफल लगा, हमें समय खपाना भी ऐसी ही अड़चनों को दूर करने में चाहिए, नकि "तू बड़ा कि मैं" खेल कर।
अमरेन्द्र जी, ये कव्वाली में पहले तो "कव्वा" है, समझ में आया, बाद में "ली", ख़ुद को ब्रूस ली का रिश्तेदार बताता है क्या?
चलिए अगली बार जवाबी कव्वाली में चला जायगा…

@अनूप शुक्ल
@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
@Udan Tashtari
आप तीनों को प्रणाम। आप एक साथ हमारे इस अकिंचन तुच्छ पोस्ट पर पधारे, कृतकृत्य कर दिया।
आदरणीय समीर जी! आदरणीय शुक्ल जी! और आदरणीय ज्ञानदत्त जी! आप लोग किसी भी नम्बरदार खेल से बहुत आगे हैं। आप लोग तो निर्णायक भूमिका और नियन्त्रक भूमिका में रहने पर सफल और सार्थक भूमिका निभा सकते हैं, जो निभाते भी हैं। आप तीनों की परस्पर कोई तुलना नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि आप लोगों की ख़ूबियाँ अलग-अलग हैं। मुझे जो कहना था, आप तीनों से, वह अव्वल तो मैंने ऊपर की अपनी पहली टीप में ही कह दिया है, मगर गुरुजी ज्ञानदत्त जी ने एक शे'र का हवाला दिया है सो मैं अपनी बात दोहराए देता हूँ -
अच्छी तरह याद है कि -
"जम्हूरियत वो तर्ज़े-हुक़ूमत है के जिसमें
बन्दों को गिना करते हैं, तोला नहीं करते"
मगर मुनव्वर राना ने भोगा हुआ यथार्थ बयाँ किया-
"अजब दुनिया है, नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं-वो महफ़िल में दरी चादर उठाते हैं"
तो आप लोग इस विद्वस्समाज में इन दंगाइयों को मौक़ा न दें, तो यह ऊर्जा और समय का अपव्यय भी बचे,
पुन: सादर प्रणाम!

Daisy said...

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