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Thursday, May 13, 2010

अभिव्यक्ति-2

अभिव्यक्ति को अगर अभि-व्यक्ति लिखा जाए तो इसका अर्थ भिन्न हो जाएगा। ये अलग बात है कि प्रचलन में न होने से वह दूसरा अर्थ न लेकर लोग रूढ़ार्थ से ही काम चला लेंगे। अभि=सीधा, व्यक्ति=आदमी यानी "-" से जुड़ा होने पर यह भाव-वाचक संज्ञा से विशेषण में बदल जाएगा क्या? तकनीकी दृष्टि से - "हाँ"।
रूढ़ार्थ का कमाल देखिए - अक्सर ब्लॉग पर टिप्पणीकर्ता, जो तेज़ी में रहते हैं, कई जगह और भी जाना है उन्हें; "उम्दा" "अति सुन्दर" "नाइस" "ग़ज़ब!" से काम चला लेते हैं।
अब 'ग़ज़ब' का अर्थ देखिए - इसका अर्थ हर कोश में दैवी आपदा, क्रोध, कोप, रोष, ग़ुस्सा, आपत्ति, आफ़त, अंधेर, विपत्ति, ज़ुल्म वगैरह मिलेगा। विशेषण के अर्थ में प्रयुक्त होने पर इसका प्राथमिक अर्थ होता है -"बहुत" या "बहुत अधिक" और द्वितीयक अर्थ होता है -"विलक्षण"। मगर इसका रूढ़ार्थ क्या है? "विलक्षण" या "विस्मयकारी" या "चमत्कारी" और आप कितना भी ढूँढें, इस अर्थ के अलावा इस शब्द का प्रयोग लगभग नगण्य मिलता है।
ऐसा ही बहुत से अन्य भाषाई शब्दों को जब कोई भाषा अंगीकार करती है, तो एक ख़ास रूढ़ार्थ को ध्यान में रखकर। फिर उस भाषा में उस शब्द का वही एक अर्थ हो जाता है। जैसे 'स्कूल' का हिन्दी में एक ही अर्थ है - विद्यालय।
'स्विच' का भी हिन्दी में एक ही अर्थ है, और भी कई शब्द हैं ऐसे।
कई बार ऐसा भी होता है कि शब्द एक भाषा से दूसरी में गया और उसके साथ एक ऐसा अर्थ जुड़ गया जो उस शब्द का मौलिक अर्थ कहीं से था ही नहीं, पर अब नई भाषा में उस शब्द का वही अर्थ हो गया। जैसे 'धारीदार' कपड़ा ख़रीदते समय उसे "लाइनिंग"दार कहा जाना, निहायत ग़लत मगर स्वीकृति की हद तक प्रचलित प्रयोग है। "लाइनिंग" का अर्थ अस्तर होता या फिर तनिक उच्चारण भेद से "आकाशीय बिजली", तो संभाव्य था। मगर नहीं, हम तो धारीदार के लिए ही इस्तेमाल करेंगे।
"बियरिंग" जब हिन्दी में आया तो बहुत समय तक इसका एक ही अर्थ था जो विशेषण "बियरिंग" का अर्थ था और उसे हम "बैरंग" कहते और पत्रों से जोड़ते थे जिनका पूरा डाक-ख़र्च प्रेषक द्वारा अदा न किया गया हो। अब डाकसेवा की लोकप्रियता और सेवा - दोनों के अभूतपूर्व ह्रास के कारण यह अर्थ खो गया है। इस बीच ही आटोमोबाइल व अन्य मशीनों, पंखा, ट्रैक्टर आदि की उपलब्धता बढ़ी और दाम भी अधिक लोगों की पहुँच में आ गए - तो "बियरिंग" के संज्ञा रूप से लोग परिचित हुए और अब रूढ़ार्थ यही है। ऐसा ही 'ट्रैक्टर' और 'ग्लास' के साथ भी है और इनके तो रूढ़ार्थ ही प्रचलन में हैं, मूल अंग्रेज़ी में भी।
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10 comments:

Udan Tashtari said...

अब हम यह तो कहने से रहे कि ’गज” पोस्ट है...:) अभी अभी समझे हैं...


वैसे स्कूल को विद्यालय के अलावा पाठशाला भी तो कहते हैं...स्विच को हमाये उपी में खटका कहते हैं...ब्जली वाला स्विच...बदल वाला नहीं.


बेहतरीन आलेख!

प्रवीण पाण्डेय said...

हम तो बैरंग को समझे ही नहीं । बैरंग वापस करने को बेरंग वापस करना ही समझते रहे ।
ज्ञान चक्षु खुले देव ।

M VERMA said...

बहुत बढिया ज्ञान दिया आपने.
ग़ज़ब तो लिखूँगा नहीं
अच्छी पोस्ट

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अच्छा लगा आप, जो कि प्रोफाइलानुसार 103 वर्ष के हैं:), का मेरे ब्लॉग पर आना और संजीदा टिप्पणी करना। पुरनियों का आशीर्वाद बने रहना चाहिए :)

यह हिन्दी ब्लॉग है, शीर्ष परिचय पैरा तो हिन्दी में कर दें।
बैरंग की उत्पत्ति जानना सुखद रहा। धन्यवाद।

Himanshu Mohan said...

@Udan Tashtari
@M VERMA
यह स्पष्ट कर देना मेरा दायित्व है कि "ग़ज़ब पोस्ट" कहते ही "ग़ज़ब" विशेषण बन जाता है और तब इसका अर्थ "विलक्षण" या "कमाल" के अर्थ में ही लिया जाएगा। जब "ग़ज़ब" अकेला हो, तभी दुविधा हो सकती है कि यह संज्ञा है या विशेषण। सो आप लोग धड़ल्ले से "ग़ज़ब पोस्ट/लेख/रचना" प्रयोग कीजिए।
धन्यवाद!

@गिरिजेश राव
आभार! शीर्ष पैरा हिन्दी में न होने के पीछे यह आशंका ही थी कि पता नहीं लिखूँ, न लिखूँ, कब तक चले। खाता 2007 में खोला मगर उसके बाद कभी कुछ नहीं लिखा, अभी 2010 की आधी फ़रवरी गुज़र जाने तक।
अब आपने कहा है, तो यह भी कर लूँगा जल्दी ही। वैसे भी 100 से ज़्यादह पोस्ट हो चुकी हैं, और अभी अगले दस-बीस आलेख तक बन्द करने का कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखता, तो हिन्दी में कर लेना ही जमता है।
धन्यवाद।

Amitraghat said...

"आपके के सानिध्य में रहने से मेरी हिन्दी में सुधार होता रहेगा। हमे अब कविताओं में कहानियों में दक्षिण भारत की भाषाओं के शब्दों का भी समावेश करना चाहिए ताकि हिन्दी के कोश और भी समृद्ध हो सके ....."

Himanshu Mohan said...

@Amitraghat
आपका सुझाव स्तुत्य है, परन्तु पहल वही कर सकते हैं जिनका संबन्धित भाषाओं पर अधिकार हो। मेरा हाथ तंग है दक्षिण-भारतीय भाषाओं में, मगर मैं यह कहना चाहूँगा कि -

@प्रवीण पाण्डेय
सुन रहे हैं न! आपके बेंगलूरु में होने का कुछ लाभ इस रूप में भी मिले हिन्दी ब्लॉग-जगत को।

Gyan Dutt Pandey said...

टिप्पणी करने की जल्दी तो मुझे नहीं होती और बिना कण्टेण्ट पढ़े बहुत कम टिप्पणियां की हैं। पर "उम्दा" "अति सुन्दर" "नाइस" "ग़ज़ब!" जैसे का प्रयोग दो अवस्थाओं में किया है - नॉनकमिटल होने पर अथवा बहुत प्रसन्न होने पर!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

अभि = सीधा !!
ही ही ही, हम भी बहुत बड़े 'अभि' हैं, इसका मतलब अब जाने हैं.

Himanshu Pandey said...

इस तरह की प्रविष्टियों की श्रृंखला बनाईये..नियमित अंतराल पर दीजिए !
काफी काम की सिद्ध होंगी यह ! लाभान्वित होगा ब्लॉगजगत !