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Wednesday, April 14, 2010

नज़्मो-ग़ज़ल कहने का आसान तरीक़ा

सबसे पहले दर्द मेँ डूबे कुछ अल्फ़ाज़ चुनो,
फिर उन्हेँ ग़म की हरारत पे देर तक सेँको;
अनमने से रहो, रातें गुज़ारो आँखोँ मेँ,
करवटेँ यूँ लो के नीँद आए भी तो सो न सको।
उदास दिल, ज़ुबाँ गुमसुम मगर मुस्काते होँ लब,
नज़र मेँ ख़्वाब होँ ऐसे जो पूरे हो न सकेँ;
ये सलीका है क़ामयाब नज़्म कहने का।
बात आगे बढ़े, बढ़कर जुनूँ-फ़ितूर बने,
वक़्त समझो के आ रहा है ग़ज़ल कहने का।
दीवानापन अगर इतना बढ़े - सब तंज़ कसेँ,
यही अस्बाबो-हुनर है न ग़ज़ल कहने का...
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3 comments:

Udan Tashtari said...

वाह जी, यह तो बड़ी बेहतरीन रेसिपी दे गये आप, आनन्द आ गया.

अजय कुमार झा said...

वाह वाह प्रभु आनंद ही आनंद ,...लगता है आपसे पूरा कोर्स कंप्लीट करवाना होगा

कविता रावत said...

Chalo achha hai aapne achha tarika bata diya hai gajal likhne ka... ham to naahak hi darte the gajal likhne se... ab jarur koshish rahegi..
Shubhkamnayne...