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Saturday, February 27, 2010

यादें : मेरे कुछ पुराने तैलचित्र (1)


गणपति के इस चित्र में मुझे पता नहीं क्या और कहाँ से प्रेरणा मिली थी जो मैंने कई चिह्न एक साथ पेण्ट किए थे। कलश, नारियल, स्वस्तिक, मोदक सहित स्वयम् एकदन्त गणपति। गणपति का शरीर और कलश एकाकार हैं और ताम्बूल, आम्रपल्लव, बाँस की टहनी, पत्तियों सहित भी दिख रहे हैं। वास्तविक तण्डुल ही तिलक के साथ चित्रित भी हैं और कुछ चिपकाए भी गए हैं, कलश पर मौलि जो गुलाबी रंग की दिखाई गई है, उसके सहित हल्दी और रोली के रगों से बनी है सूँड। मस्तक पर ॐ का चिह्न भी तिलक के नीचे दिख रहा है जिसका चन्द्रबिन्दु ही वैष्णव तिलक का रूप ले रहा है और गणपति की शैव और वैष्णव, दोनों मतानुयायियों में समान महत्ता दिखाता शैव तिलक चिह्न भी साथ ही मस्तक पर है।
मेरा लगाव इस चित्र से इसीलिए है कि एक तो मैं इस चित्र के बनाने के चार-पाँच साल बाद इन प्रतीकों के परस्पर संबन्ध और उनके महत्व को कुछ-कुछ समझ पाया था, दूसरे अब यह फफूँदी से खराब होना शुरू हो गया है।

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