किशोर'दा : याद तो हमेशा आते रहते हैं, सो कैसे कहूँ कि आज ज़्यादा याद आए? मगर यह कह सकता हूँ कि आज मन किया कि उनके कुछ गीत सुनाऊँ चाहने वालों को - जो शायद उनके बहुत से प्रशंसकों ने भी सब न सुने हों, लेकिन जो बहुत हिट हैं वो तो सुने होंगे। सारे तो सिर्फ़ दीवानों ने ही सुन रखे होंगे, तो पहला बहुत हिट गीत 1969 की "ख़ामोशी" से - गुलज़ार के कलम से निकला हुआ…
और अब एक और हिट गीत "मुक़द्दर का सिकन्दर" से -
अमिताभ जी के जन्मदिन पर उन्हें बधाई देने का एक तरीक़ा भी है ये गीत। प्रकाश मेहरा के साथ जो उम्दा फ़िल्में अमित जी की रहीं - उनमें से एक मील का पत्थर है ये - डॉ0 लागू, मास्टर मयूर, क़ादर ख़ान हों या "दिलावर" के रूप में आशिक अमजद - कोई भी नहीं भूलता भुलाए - और ज़ोहरा-सिकन्दर की तो जोड़ी के कहने ही क्या? राखी के प्रति अपने इकतरफ़ा समर्पण भरे लगाव को सिकन्दर कभी खुलकर एक्सप्रेस नहीं कर पाया - मगर किशोरकुमार की आवाज़ में जो नहीं कहा - वो भी कहा गया… और फ़िल्म की थीम - "ज़िन्दगी तो बेवफ़ा है - एक दिन ठुकराएगी…" - वाह!
ये बात सबसे ज़्यादा क़ाबिले तारीफ़ होती थी सलीम-जावेद की कथा-पटकथा में कि हर कैरेक्टर पूरी तरह डेवलप हो पाता था - और इसीलिए दर्शक बहुत गहरे तक महसूसता था पूरी फ़िल्म को - उसकी कहानी की शिद्दत को। अब तो कई बार ऐसा लगता है कि पूरी फ़िल्म ख़त्म हो जाती है और हीरो का ही किरदार ठीक से समझ नहीं आता। घण्टे तो वही तीन या ढाई हैं - मगर अफ़रातफ़री बहुत है। और अफ़रातफ़री में सिर्फ़ कॉमेडी हो सकती है - जिसमें किशोर'दा का कोई सानी नहीं। तो "आँसू और मुस्कान" के इस खेल में किशोर'दा के साथ शामिल हो जाइये - गुणीजनों! भक्तजनों! -
और इस गीत को आप में से कुछ लोग हिन्दी का मज़ाक उड़ाने का ज़रिया भले ही समझ लें - पर सच यही है कि जिस उद्देश्य से रचा गया यह नमूना - उसमें पूरी तरह सफल है। मुझे अब भी यह लगता है कि किशोर'दा के अलावा कोई शायद इस गीत से न्याय न कर पाता - किशोर'दा अपने आप में एक स्कूल हैं - गाने की अदायगी के मामले में जैसे रफ़ी ने ग़म के गाने और नशे के गाने के बीच सिर्फ़ लहजे से फ़र्क करना सिखाया - जो गायकों की पूरी पीढ़ियों ने सीखा, वैसे ही मस्ती और मज़ाक, ग़म और फ़लसफ़े के बीच बारीक़ फ़र्क किया सिर्फ़ आवाज़ से - आवाज़ के जादूगर किशोर ने। वो चाहे शैलेन्द्र सिंह हों या उदित नारायण, सबने सीखा और अपनाया, अमित-अभिजीत-कुमारसानू-बाबुलसुप्रियो की बात नहीं करता - जो किशोर की अदायगी के किसी एक ख़ास रंग को अपना कर ही स्टार बन गए।
तो प्रणय निवेदन कीजिये - "प्रिय प्राणेश्वरी! हृदयेश्वरी!"
अब अगर आप को लगने लगा हो कि आपने ये सब गीत सुन-देख रखे हैं, तो आपके लिये ही प्रस्तुत है यह दुर्लभ गीत किशोर'दा का - "देस छुड़ाये,भेस छुड़ाये…"
फिर दो आसान - अक्सर सुने हुए गीत प्रस्तुत हैं। पहला तो - "अगर दिल हमारा, शीशे के बदले-पत्थर का होता…" (काश अपना तो हो ही जाता यार कम से कम…!) -
और दूसरा सदाबहार - "पल पल दिल के पास…"
और अब बताइये - क्या ये गीत भी देखा-सुना है आपने?
और फिर किशोर'दा को याद आ गया - अचानक - कि वो बंगाली छोकरे हैं -
और जब किशोर'दा को कुछ याद आ गया तो आप भी याद कर लें तो क्या हर्ज है? तो सुन कर देखिये- "आकाश केनो डाके"…कुछ याद आया?
और फ़िलहाल ज़्यादा नहीं पर एक बांग्ला गीत किशोरकुमार की सुमधुर आवाज़ में -
और अब चलते-चलते……
"हवाओं पे लिख दो - हवाओं के नाम…"
10 comments:
मोती ढूंढ लाए हैं किशोर दा के खजाने से आप
पल पल दिल के पास ...
और मुकदर का सिंकंदर..
मजा आ गया
बहुत शुक्रिया आपका.
"तेरे तीरों में छुपे प्यार के खजाने"...मैंने नहीं सुना था...
मजा आ गया...
और "वो शाम कुछ अजीब थी" और "पल पल " तो अपना ऑल टाइम फेवरिट है :)
बहुत मस्त पोस्ट :)
Enjoying the songs...thanks.
किशोर दा हमें भी बड़े प्रिय हैं।
shukriya!!!!
itne pyare blog k liye!!!!
kabhi mere yahaa bhi aaiye
lory
bahut din bad aa raha hun maph kariyega badhai
किशोर दा को श्रद्धांजलि!
kishorkumar g k kuch rare geet aapne apne blog mein diye hain. khasker 'hawaon pe likh do---'
kintu kuch technical karno se main sun nahin pa raha hoon--
per aapko is tarah k prayas k liye dhanvad..badhai..
सुरुचिपूर्ण चयन, बढि़या संकलन.
So gaye Himanshu bhaiya..kho gaye sadaa ke liye ..unka heart attack se 25 september ki raat nidhan ho gayaa.. meri vinamr shraddhaanjali .
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