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Saturday, September 4, 2010

परमपिता परमात्मा को प्रणाम!

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै:
वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:
ध्यानावस्थिततद्'गतेनमनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा: देवाय तस्मै नम:


यह प्रार्थना परमपिता परमात्मा के प्रति सबसे प्यारी स्तुति लगती है मुझे। किसी देवता का झगड़ा नहीं - 
जो आपको परमतत्व लगता हो - 
जिसे ईश मानते हों आप - 
उसी को नमन है।
[राणाप्रताप सिंह जी ने सुझाया कि भावार्थ भी दिया जाए, सो सलाह के लिए आभार सहित प्रस्तुत है:]
"जिसकी स्तुति ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुत(अर्थात् वैदिक देवगण) दिव्य स्तुतियों से करते हैं,
वेदपाठी बटुक जिसके बारे में वैदिक ॠचाओं में पदक्रम निभाते हुए गाते हैं - सभी उपनिषदों और वेदों के अन्य सभी अंगों सहित,
जिसे योगी अपने मन और चित्त को 'उसी' में स्थित करके देख पाते हैं - ध्यान में अवस्थित होकर (समाधि में),
जिसका ओर-छोर भी सुरों और असुरों में से किसी को भी नहीं ज्ञात है,
उसी देवता को (मेरा) नमन है।"
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9 comments:

Udan Tashtari said...

नमन!

आभार आपका.

प्रवीण पाण्डेय said...

ईश को मेरा भी नमन।

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

उस परम पिता परमेश्वर को नमन|
गुरुदेव यदि इसका भावार्थ भी लिखें तो बहुत अच्छा होता
ब्रह्मांड

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत बहुत धन्यवाद|

Anonymous said...

very nice post....


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anju said...

भावार्थ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
हिमांशु जी आप ने मुझे कुछ नया लिखने के लिए कहा इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.आजकल सिर्फ पढ़ने का ही काम कर रही हूँ |लिखने का सोचती तो बहुत हूँ पर सपनो में ही लिख पाती हूँ |हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया |

shikha varshney said...

परम पिता परमात्मा को मेरा भी नमन.

प्रवीण त्रिवेदी said...

सबके साथ हमारा भी धन्यवाद !

प्रवीण त्रिवेदी said...

....परमात्मा को !