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Monday, July 12, 2010

गणपतिं प्रणमाम्यहं

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा
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वक्र (घूमी हुई/मुड़ी हुई) सूँड़ वाले और बड़े आकार के शरीर (लम्बोदर) देव (जो) करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले (हैं, वे) मुझे सभी कार्यों में विघ्न (बाधा) रहित करें!


अभिव्यक्ति को अक्षर-शब्द-अर्थ-रस-छ्न्द सहित कल्याणकारी बनाने की प्रार्थना:
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वर्णानामर्थसंघानाम् रसानाम् छन्दसामपि
मङ्गलानाञ्चकर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ
वर्णों (अक्षरों)और अर्थों के समूहों (अर्थात् शब्दों और उनके भिन्न-भिन्न अर्थों), रसों और छन्दों के सृजन करने वाले तथा कल्याणकारी (हैं जो, ऐसे) वाणी (सरस्वती) और विनायक (गणेश) की (मैं) वन्दना कर(ता/ती) हूँ।


एक और प्रणाम - श्रद्धा और विश्वास को!
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भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तस्थमीश्वरम्
(उन) भवानी और शंकर की मैं वन्दना कर(ता/ती) हूँ (जो) साक्षात् श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप (हैं, और) जिनके बिना सिद्ध भी अपने अन्तस् में (भीतर) स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते!

 
एक प्रणाम चोरों के सरताज को!
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व्रजेप्रसिद्धम् नवनीतचौरं
गोपाङ्गनानाञ्च दुकूल चौरं
अनेकजन्मार्जित पापचौरं
चौराग्रगण्यं पुरुषं नमामि!
ब्रजभूमि में माखनचोर, गोपियों के वस्त्रचोर, अनेकानेक जन्मों में इकट्ठे किए हुए (भक्तों के) पापों को (भी) चुराने वाले चोरों में अग्रगण्य पुरुष (अर्थात् श्रीकृष्ण) को नमन कर(ता/ती) हूँ!

 
एक प्रणाम दिव्यदृष्टि को!
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रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:!
(श्री) राम (जो) राजाओं में मणि (सिरमौर हैं), सदा विजेता हैं, (ऐसे श्री) राम (जो) रमा (लक्ष्मी) के पति (हैं, अर्थात् श्रीविष्णु) को (मैं) भज(ता/ती) हूँ, (जिन श्री) राम के द्वारा निशाचरों की सेना मार दी गई, उन (श्री)राम को नमन है।
एक प्रणाम अनन्यभक्त-सेवकशिरोमणि-विद्याबुद्धिबलप्रदाता महावीर को, सीतारामसहित!
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सीतारामगुणग्राम पुण्यारण्यविहारिणौ
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ
सीता-राम के गुणों के ग्राम और पुण्यों के जंगल में विहार करने वाले जो स्वयं विशुद्ध विज्ञान (साक्षात् विशेष और सम्यक् ज्ञान) हैं उन ज्ञानियों में श्रेष्ठ - कपियों में श्रेष्ठ (हनुमान जी) का (मैं) वन्दन कर(ता/ती) हूँ ।

(अनुवाद में कुछ तकनीकी गड़बड़ हो सकती है, मुझे संस्कृत आधिकारिक तौर पर नहीं आती है)
 
और यह सब राजीवनन्दन की हिन्दप्रभा पर पहली पोस्ट से प्रेरित, आभार सहित!
पुनश्च:
प्रथम चार श्लोकों का अनुवाद, यथा-शक्ति अंकित कर दिया है - डॉक्टर महेश सिन्हा जी और श्री वीरेन्द्र सिंह चौहान जी की सलाह के अनुसार। शेष फिर…
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12 comments:

वीरेंद्र सिंह said...

Himanshu ji..Mujhe lagta hai ki agar Hindi Arth likh dete ya likh den to aur mazaa aayegaa.

Haalanki mujhe samajh to aa gayaa, lekin kuchh kasar rah gai.

Sanskrit jaisi Mahaan, pracheen aur jise hum Apnni bhasa kahten hain, us bhasa par aapki pakad dekhkar mujhe apne uper taras aa raha hai..ki main kaise peeche rah gaya?


Sanskrit, Hindi, aur Urdu Bhasha par aapki itni achhi AUR Gahri pakad ke liye HIMANSHU MOHAN JI............................
APKO BADHAII

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर और पूर्ण।

डॉ महेश सिन्हा said...

हिन्दी अर्थ भी देते तो सोने पर सुहागा हो जाता .

Arvind Mishra said...

मनोरम !

Amrendra Nath Tripathi said...

व्रजेप्रसिद्धम् नवनीतचौरं
गोपाङ्गनानाञ्च दुकूल चौरं
अनेकजन्मार्जित पापचौरं
चौराग्रगण्यं पुरुषं नमामि!
--- याद आ गया जसराज जी की आवाज में इस श्लोक को सुनना ! स्वरावृत्ति में बार बार .. अद्भुत .. ! आभार !

ZEAL said...

bahut sundar....aabhar !

Shiv said...

बहुत सुन्दर!

Himanshu Mohan said...

@Virendra Singh Chauhan
@डॉ महेश सिन्हा
प्रिय वीरेन्द्र सिंह चौहान जी और डॉक्टर सिन्हा जी!
आपके सुझाए अनुसार यथा-शक्ति प्रथम चार श्लोकों का अनुवाद अंकित कर दिया है। शेष कल…

वीरेंद्र सिंह said...

Himanshu ji.. Hindi anubaad padhkar mere gyaan ki vradhi bhi hui aur theek se samjh bhi aa gaya hai.

Aapne hum donon ke kahne par ye anubad kiyaa.. ye jaan kar badi khusi hui.

Iske liye aapka dhanaybaad.

डॉ महेश सिन्हा said...

बधाई एवं धन्यवाद

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

ये पूरा यज्ञ कर डाला आपने हमारे लिए. हम कृतकृत्य हुए.
सच में अब अधिक पवित्र मन से और पूरी निष्ठा से लिखेंगे...वचन देते हैं.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

अरे हाँ, एक बात तो बतायी ही नहीं कि यह श्लोक और अर्थ पूरे के पूरे कॉपी-पेस्ट कर डाले हैं यहाँ पर



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