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Saturday, June 19, 2010

गौरैया

एक गौरैया मिली दालान में

दुपहरी में चहकती-चुगती हुई
घोंसले के चन्द तिनके, ले चिड़ा
इधर फुदका-उधर फुदका - ले उड़ा
और गौरैया,
फुदकती रही इठलाती हुई
एक गौरैया मिली दालान में...


धूप में, फिर छाँह में-
फिर धूप में जाती हुई
क्या कहूँ? कितने न जाने-भाव दिखलाती हुई
ज़िन्दगी हर पल फुदकते हुए जी जाती हुई
द्वेष सा कुछ भी न लेकर ध्यान में
एक गौरैया मिली दालान में ...
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12 comments:

ZEAL said...

How beautiful is the life of sparrow. No tensions, no worries, no woes, just a peaceful life.

Can we learn anything from these birds/animals? Art of living !

Living selflessly, without regrets, without complaints, without issues, without comparison and above all, without gender bias !

I wish to become sparrow in my next birth.

Beautiful creation ! [Reflecting the innocence of the poet's mind ]

Anamikaghatak said...

ek achchi kavita..........badhai

hem pandey said...

ज़िन्दगी हर पल फुदकते हुए जी जाती हुई
द्वेष सा कुछ भी न लेकर ध्यान में
एक गौरैया मिली दालान में ...'

- मनुष्य भी चाहे तो गौरैया की तरह चहक कर जीना सीख सकता है - यदि छोटी छोटी बातों पर खुश होना सीख ले.

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

फोटो रचना को जीवंत बना रही है.
पर गौरैया दूसरे चित्र तक पहुँचते-पहुँचते थोड़ी सी ज्यादा ही रंगीन हो गयी है !!
हा हा हा

Himanshu Mohan said...

@E-Guru Rajeev
भाई ऊपर वाली चिड़िया है नीचे चिड़ा, उसके दाढ़ी है...

प्रवीण पाण्डेय said...

प्यारी चिड़िया पर प्यारी कविता ।

Dr.Ajmal Khan said...

bhai gauraiya mere pass aai thi aur aap ki badi tareef kar rahi thi
aur aap ko thanks kaha hai usne, uske uper kavita likhne ke liye. bada sammanit feel kar rahi thi.

Amitraghat said...

जीवन दर्शन सिखा गई चिड़्या ................

mukti said...

पता है मुझे गौरैया बहुत अच्छी लगती है क्योंकि वह घरों में रहती है, अपनी सी लगती है. जब हम छोटे थे तो रेलवे क्वार्टर्स के रोशनदान में हमेशा घोंसला बनाकर रहती थी... इस कविता से बचपन की याद आ गयी..प्यारी कविता है.

के सी said...

कविता को देख कर घर और आँगन की याद आई
आप बहुत उम्दा लिख रहे हैं, कृपया निरंतरता बनायें रखें.

rashmi ravija said...

ज़िन्दगी हर पल फुदकते हुए जी जाती हुई
द्वेष सा कुछ भी न लेकर ध्यान में
एक गौरैया मिली दालान में ...
सहज शब्दों में एक प्यारी सी रचना...चित्र ,रचना को बहुत अच्छी तरह compliment कर रहें हैं..

डॉ .अनुराग said...

जिंदगी के किसी हिस्से को आपने जैसे कागजो में समेटा है .......इन दिनों
गौरैया भी नहीं मिलती....जैसे इंसानियत के विलुप्त होने की तस्दीक करती है