कुल मिला कर बीते दिनों को याद करके हँसी आ रही है।
बीते दिनों को याद करके कोई हँसता है, कोई रोता है। जिसे लगता है कि “कितनी बेवकूफ़ी की बीते दिनों!” - वो हँसता है। जिसे लगता है कि बेवकूफ़ी बीते दिनों नहीं हुई, अब हो रही है, वो नहीं हँसता।
सबसे पहले तो हँसी आती है अपनी समझ पे - बज़ देखी, कमेण्ट किया या आगे बढ़े और उस कमेण्ट के बाद सब बज़ को म्यूट कर देता था मैं। मज़े की बात ये है कि अब भी मैं बज़ से आगे बढ़ते ही म्यूट कर देता हूँ, क्योंकि मुझे पता नहीं कि और क्या करना चाहिए बज़ का। ज्ञानदत्त जी ने अभी पिछले हफ़्ते पूछा कि मैंने “अपने ब्लॉग बज़ से तो जोड़े हैं न?” तो कबूलना पड़ा कि “नहीं”। पता ही नहीं था कि कैसे जोड़ूँ। अब तो कुछ सीखा और कर लिया पिछले रविवार को।
फिर एक पुरानी बज़ जिसमें मैंने अपने अनुभव इसी तरह दर्ज किए थे, उसको पा गया बज़ को टटोलने में। बहुत से कमेण्ट थे – सलाहें थीं कि इसे पोस्ट बना देना चाहिए। मैं बज़ म्यूट करके मस्त था! कुछ पता नहीं था कि कितनी बड़ी अभद्रता कर रहा था – अजाने में। सो अब यह पोस्ट पर ही दर्ज कर रहा हूँ और लिंक सहित (देखिए मैं सलाह पर अमल करता हूँ – अच्छे बच्चों की तरह!)।
फ़ॉलो करने वालों के ब्लॉग पर जाना आसान होता है। यही सोच कर फ़ॉलो करने वाला विजेट लगा लिया अपने ब्लॉग पर, ऊपर ही। नतीजा – प्रवीण त्रिवेदी जी, माणिक का माणिकनामा, पद्मसिंह जी का पद्मावलि और (पद्मसिंह जी का साथ पहले ही कुछ प्रगाढ़ लगता है, शुरूआत के साथी हैं न!) दिलीप जी का ब्लॉग तथा प्रणव के अमित्राघात पर जाना आसान हो गया मेरे लिए। कुछ ब्लॉग हटाए भी - जिन पर मैं कुछ पसन्द का नहीं पा रहा था, और जिन पर नई सामग्री नहीं थी। गूगल रीडर पर मुझे आसान नहीं लगा मनचाहे ब्लॉग पर जाना।
आराधना और स्तुति पाण्डेय दोनों ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं और बज़ पर भी। अजीब सी आदत होती है लड़कियों की - लड़कियाँ चाहती हैं कि उन्हें कोई छेड़े - तभी तो पहले बताती हैं कि उन्हें चिढ़ किस बात से है, फिर चिढ़ाई जाने पर ख़ुश होती हैं। ये बात मैं अपने बचपन से नोट कर रहा हूँ, ज़्यादातर दीदियाँ तब भी ऐसी ही होती थीं, अभी भी मेरी बेटी पहले अपने भाई से ख़ुद ही कुछ शेयर करेगी, फिर उसी पर घमासान छिड़ेगा।आराधना का ब्लॉग, भानुमती का पिटारा - स्तुति पाण्डेय, ई-गुरू राजीव उर्फ़ आरएनडी, प्रवीण त्रिवेदी मास्साब के ब्लॉग, शेफ़ाली पाण्डे का कुमाऊँनी चेली इन सब पर मैं नियमित जाता रहता हूँ, अक्सर अच्छा पढ़ने को मिल जाता है यहाँ। मन हुआ तो टिप्पणी भी करी – न हुआ तो न करी।
और ब्लॉगर जो नज़र में आए, उनमें हैं अदा जी जिनके ग़ुरूर, अदा और हुनर का परस्पर संबंध अन्योन्याश्रित है, मगर मेरी नज़र में तो उनके लाडले मयंक की रेखाएँ बसी हैं - कृष्ण! प्रकट ही हो गए आप तो मयंक की रेखाओं में! उनकी काव्यमञ्जूषा भी खोल के देख आता हूँ कभी-कभी। पिछले दिनों कुछ खिन्न सी थीं, ब्लॉगजगत की किन्हीं घटनाओं से; मुझे अच्छा लगा कि मैं पूर्णकालिक ब्लॉगिया नहीं हूँ – मेरे पास अपने सरदर्द पहले ही कम नहीं हैं। अब यशोधरा पर एक अच्छी रचना लाई हैं आज मदर्स डे पर।
अरविन्द मिश्रा का क्वचिदन्यतोऽपि, अमित्राघात, ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की मानसिक हलचल – मेरी हलचल उन्होंने इस बीच शुरू किया और स्थगित भी कर दिया, प्रवीण पाण्डेय और उनका ब्लॉग प्रवीण और ज्ञान पाण्डेय, शिवकुमार मिश्रा और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग परिष्कृत रुचि की माँग को पूरा करते हैं और हिन्दी ब्लॉग में प्रवीण पाण्डेय जैसे और ब्लॉगियों की ज़रूरत है, उसे समृद्ध बनाने और विश्वस्तर का बनाने के लिए। और भी ऐसे ब्लॉगिये हैं, मगर प्रवीण की तरह अपने स्तर का निर्वहन करते रह पाने में देखें कब तक ये सब सक्षम रहते हैं। शरद कोकास भी गुणवत्ता का उच्च स्तर बनाए रखते हैं, और संवाद में भी रहते हैं। फुरसतिया के बारे में भी यही राय है कि वह स्तरीय लेखन करते हैं, और जब ठेलुअई करते हैं तो वह भी स्तरीय।
रानी विशाल का काव्यतरंग, माणिक का माणिकनामा बढ़िया हैं। रतन सिंह शेखावत का ज्ञान-दर्पण बहु्त काम का ब्लॉग है, हिन्दी तक सीमित ब्लॉगरों के लिए। प्रियदर्शिनी तिवारी शौकिया लिखती हैं, अनियमित हैं मगर अच्छा लिखती हैं। जिन्न्श वाला लेख तो कमाल था। ताऊ का अड्डा भी बड़ा रोचक है और अपनी रोचकता भी बनाए हुए है और सरोकार भी। प्रणाम इसी बात पर। बस ये नहीं जान पाता कि ये चिम्पैंज़ी की खाल का बुर्क़ा ओढ़े रहने वाला ताऊ है कौन?
इयत्ता, चोखेर बाली – वन्दना पाण्डेय, अन्जना का ब्लॉग - पॉवर, व्योम के पार-अल्पना वर्मा, वन्दना अवस्थी 'दुबे' की अपनी बात और किस्सा कहानी इन सब पर पढ़ने को अच्छी सामग्री मिलती रहती है। एक चर्चा मंच है जहाँ कृति देव से यूनिकोड में और उल्टा परिवर्तन संभव है, वहीं दाएँ हाशिए में इसका लिंक है। मैं वन्दना गुप्ता जी के संदर्भ से पहुँचा था यहाँ। वन्दना जी के ज़ख़्म जो फूलों ने दिये, ज़िन्दगी……एक ख़ामोश सफ़र और एक प्रयास तीनों ही अच्छी रचनाओं के ठिकाने हैं, मगर उनकी अपनी ही रचनाएँ क्रॉस-पोस्ट भी होती हैं इन पर।
बहुत रंगीन से कई लेबल लगे होते हैं जहाँ- वहाँ से मैं जल्दी ही भाग लेता हूँ। ईमानदारी से स्वीकार करता हूँ मुझे सज्जा करनी नहीं आती – मेरे ब्लॉगों की थीम भी ज्ञानदत्त जी ने सहेज दी है – सो लगी है।
वास्तव में यह सहजता, मृदुता और नए ब्लॉगियों को प्रोत्साहित करने का बड़प्पन ही “उड़नतश्तरी” समीर लाल जी और ज्ञानदत्त जी को वह दर्जा दिलाए हुए है जिस तक पहुँचने के लिए सिर्फ़ एक अच्छा ब्लॉगिया ही नहीं, और भी बहुत कुछ होना पड़ता है। उड़नतश्तरी आप के यहाँ से गुज़रेगी सर्रर्रर्रर्रर्र और टिप्पणी कर के आप को दे जाएगी ऑक्सीजन आपके ब्लॉग को जिलाए रखने के लिए – जब तक आप यह प्राणवायु देना स्वयं न सीख लें –या जब तक उड़नतश्तरी दुबारा सर्राटा न भरे…!
अमित्राघात पर नई रचना बहुत ख़तरनाक हालात को बयाँ करता हुआ सशक्त ताना है, समाज की महिलाओं के प्रति संवेदनहीनता और दोहरे मापदण्डों के प्रति।
पंकज उपाध्याय ने ग़ज़ब ढा दिया है अपनी नई पोस्ट में- मेरे विचार मेरी कविताएँ पर। कभी गुमसुम, कभी उदास और मासूम, कभी रंगीला-छ्बीला ये लड़का मेरी नज़र में लड़कियों के लिए एक सॉफ़्ट टारगेट है – एलिजिबुल कुँआरा और जैसा है वैसा होने के नाते। अरे पण्डितो! और कुँआरी कन्याओ! मौसियो! चचाओ! पकड़ो – जाने न पाए!
पीडी - मेरी छोटी सी दुनिया और कॉमिक्स, ललित शर्मा ललितडॉटकॉम, अजित वडनेरकर का शब्दों का सफ़र, सुख़नसाज़, सुख़नवर2सुख़नवर, संजीत त्रिपाठी का ब्लॉग सब बहुत अच्छे लगे। पीडी यानी प्रशान्त प्रियदर्शी की लेखनी में तो दम है ही, उन्होंने बड़े-बड़ों को बच्चा बना दिया, और यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि मेरी कॉमिक्स पढ़ने की प्यास अभी भी अधूरी ही है।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी, अरुणेश जी और झनकार के ब्लॉग तथा राजे शा का हँसना मना है, भी अच्छे लगे। संजीव तिवारी जी की पत्रकारिता स्तरीय है। सुमन “nice” जी को कौन भूल सकता है? बहुत-बहुत धन्यवाद उनके प्रोत्साहन के लिए। इसके साथ ही एक आनन्द का ब्लॉग देखा था जो संस्कृत में था, शायद इन सबको फ़ॉलो करना भूल गया या शायद लिंक हट गया - तभी इस समय लिंक नहीं मिल रहा। बाद में ढूँढ कर लगाऊँगा।
राकेश कौशिक जी का हृदय-पुष्प, पूनम जी का झरोखा, शारदा अरोरा जी का गीत-ग़ज़ल, ज़िन्दगी के रंग सब बहुत अच्छे लगे मुझे। शारदा जी को चेतावनी दे आया था कि उनकी कोई रचना –या यों कहें कि उनका “आइडिया” चुराऊँगा किसी दिन, अभी चुराना शेष है।
शरद कोकास का ब्लॉग एक ऐसा ब्लॉग है जहाँ जाकर कभी निराश नहीं लौटना पड़ा। ज़ाहिर है कि ये भी न केवल अच्छे रचनाकार और कवि हैं, बल्कि साथ ही अच्छी चयन की समझ भी रखते हैं। अनूप शुक्ल ही फुरसतिया हैं ये जानने में देर लगी,जब से मैंने प्रोफ़ाइल देखना शुरू किया तब जाना। फ़ोटो लगाते हैं ब्लॉग पर, मगर प्रोफ़ाइल पर नहीं–शायद फ़ुर्सत न मिली हो! :)
ग़ज़ल के बहाने - श्याम सखा ‘श्याम’ जी के ब्लॉग पर जाना सुखद रहा, श्रद्धा जैन की भीगी ग़ज़ल तो ख़ैर भिगोती ही है। नीरज गोस्वामी का ब्लॉग, कुमार ज़ाहिद का ब्लॉग, गौतम राजरिशी का “पाल ले इक रोग नादाँ”; पंकज सुबीर की कुछ प्रेम कथाएँ, सर्वत इण्डिया, वीनस केसरी और उनका ब्लॉग आते हुए लोग, पद्म सिंह, अर्श, मुफ़्लिस और उनका तर्ज़-ए-बयाँ, शाहिद मिर्ज़ा ‘शाहिद’ के जज़्बात ये सब ग़ज़ल से जुड़े अच्छे ब्लॉग हैं, मुझे पसन्द हैं। सतपाल ख़याल बड़ी मेहनत से काम कर रहे हैं आज की गज़ल पर।
जिन्हें मैं लगातार गूगल बज़ पर ही पढ़ता रहा हूँ (कभी-कभी ब्लॉग पर भी जाना होता है) वे हैं दिनेशराय द्विवेदी जी-बज़ पर और अजय झा जी भी-बज़ पर। द्विवेदी जी का संस्मरणात्मक और वर्णनात्मक लेखन उम्दा और सहज है और विधि के तो विशेषज्ञ वे हैं ही।
अविनाश वाचस्पति जी- नुक्कड़ पर, संगीता पुरी जी का गत्यात्मक ज्योतिष जिन्हें मैं लगातार पढ़ता रहा हूँ ऐसे नियमित और अच्छे ब्लॉग हैं। इन्दु पुरी गोस्वामी जी का ब्लॉग भी बहुत रोचक और प्रेरणास्पद बना रहता है, बाक़ी स्वयं वे “हक़ से माँगो प्रिया गोल्ड” टाइप लगीं। अपनी बात पूरे हक़ और अपनत्व से कहती हैं; कोई बनाव-दुराव-छिपाव नहीं – सीधा-सरल व्यवहार। हरकीरत ‘हीर’ एक अत्यन्त सशक्त हस्ताक्षर हैं कविता के सभी पृष्ठों पर। अनुवाद में भी उनका योगदान है, मैंने अभी देखा नहीं सो कैसे कहूँ उस बारे में?
जो नए जोड़े - गुलज़ारनामा, दिव्या का ब्लॉग, निशान्त मिश्रा का ब्लॉग से ज़्यादा मज़ेदार योगदान ट्विटर पर मिलता है मुझे – यू-ट्यूब लिंक के रूप में। अन्य भी कई ब्लॉग और उनके रचनाकारों का ज़िक्र बाक़ी है, जैसे स्वप्निल कुमार “आतिश” का “कोना एक रुबाई का”, चौधरी, अनामिका की सदाएँ, अनिल कुमार “हर्ष” आदि; सुलभ सतरंगी, पारुल मगर अब अगर आज ही सब को लिख सका तो फिर अगली बार क्या लिखूँगा?
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इस पोस्ट में यदि किसी को कुछ आपत्तिजनक लगे तो मुझे क्षमा कर दें। ये मेरी अपनी राय है, बदल भी सकती है और नहीं भी। मगर ये किसी दूसरे की राय नहीं है, अत: ईमानदारी से सारी ज़िम्मेदारी मेरी अपनी है। वैसे भी मेरी अकिंचन राय से किसी को क्या फ़र्क पड़ सकता है?
स्वार्थपरक निजी कारणों को मैं सार्वजनिक किए देता हूँ : मुझे अपने पसन्दीदा ब्लॉग ढूँढने के लिंक एक जगह मिल जाएँ इस उद्देश्य से मैंने लिंक इकट्ठे किए, और राय इसलिए दर्ज की कि बाद में देखूँ और हँस सकूँ – कि इस समय मैं क्या सोचता था! (और इस बारे में बज़ पर मिली सलाहों का ध्यान रखने की पूरी कोशिश भी की है)
45 comments:
interesting
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
http://madhavrai.blogspot.com/
iइतना विस्तार देखकर मैं तो अभी ही सोच रहा हूँ कि अगली बार क्या लिखियेगा आप..हा हा!
बेहतरीन विश्लेषण..अब आप प्रो ब्लॉगर कहलाये..सब जान गये है न, इसलिए. :)
chatpati , jaaykedaar post !
You talked about all chatpate and atpate bloggers but you forgot to mention few serious bloggers- [ Ali ji, Dwivedi ji, Girijesh ji, Ojha ji, Dr. Daraal, Sadhna ji, Asha ji,Alpana ji, Vani ji et al ]
हे राम, इतना कम समय हुआ आये और हिन्दी ब्लॉगजगत को इतना जानते हैं हिमांशु मोहन! हम तो अब तक न जान पाये इतना अब तक।
एक महत्वपूर्ण लिंकायमान पोस्ट!
खूँटी पर टाँग दिये हैं, अब जब नीचे आने के लिये फड़फड़ायेंगे तब सब कहेंगे कि बड़ा एक्टिव है । चलिये मजा ले लीजिये । पर हम ही अकेले नहीं है, यही संतोष है ।
हिमांशु भाई,
आपकी इस कदर बारीक निगहबानी का कायल हूं।
यह बात मैंने अपने ब्लाग में भी कही है और आपके इस ब्लाग ‘संगम-तीरे’ पर भी दोहरा रहा हूं। बल्कि प्रामाणिकता के साथ कह पा रहा हूं।
आपमें बहुत ऊर्जा और आत्मविश्वास है । लेकिन एक खास बात भी है कि आपमें व्यर्थ का आत्मसम्मोहन नहीं है जिससे बहुत कम लोग बच पाते हैं।
ब्लाग की दुनिया में आप धनबाद की आग हैं। लेकिन सदुपयोग आपकी आंच का हो रहा है।
"एकदम झन्नाटॆदार विश्लेषण ...."
kya bat hai! aapne to sabko badhiya samet kar vishleshan hi kar dala.
man na padega aapki nigah aur kshhamta ko.
shandar.
gazab ..ka vishleshan
बहुत बढ़िया ब्लॉग समीक्षा की है आपने
i am agree with Zeal, and would like to add few names who are serious bloggers like GHUGHUTI BASUTI JI, RANJANA JI, RASHMI RAVIJA JI and upcoming AMRENDRA TRIPATHI.
@mrityunjay kumar rai-
धन्यवाद, धन्यवाद भाई।
@Udan Tashtari-
जय हो!
प्रवीण पाण्डेय अपने खूँटी पर टाँगने की ठन-गन कर रहे हैं, अब हम क्या करें जो आप टंकी पे चढ़ा रहे हैं हमें? नज़्रे-करम का तलबगार हूँ हुज़ूर!
@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
गुरु जी प्रणाम।
ये तो होना ही था!
आप हमें मेले में ले आए, तो हम क्या चुप बैठेंगे? बस अभी ज़रा समझ रहे हैं मेले को। इसके बाद आएँगे "गुब्बारा-गुब्बारा" करते हुए।
@प्रवीण पाण्डेय
अभी टाँगा कहाँ, अभी तो टंकी की तरफ़ ले चल रहे हैं… :)
@kumar zahid
अब आपकी बात मेरी समझ में यह आती है "बहुत ऊर्जा-व्यर्थ का आत्मसम्मोहन नहीं-धनबाद की आग-सदुपयोग आँच का" यानी हमें कोयला कह रहे हैं आप! चलिए कोई बात नहीं, किसी ग़रीब के लिखने-पढ़ने का सहारा बनके उसके बाद पेट की आग बुझाने में काम आएंगे।
:) है न नज़र बारीक़? और नुक्ताचीं भी? :) :)
@Amitraghat
@Sanjeet Tripathi
@राजेन्द्र मीणा
@Ratan Singh Shekhawat
(एक बड़ा सा थैंक्यू)
भाई लोग! ये कोई विश्लेषण-फिसलेशण नईं; गुरू बोले तो होनेच् नईं सकता। वो ज़िम्मेदार-समझदार लोग का काम, जास्ती खाली-पीली भंगकस मारने का नईं! अपुन लोग को भाई बोला काम पे लगने का तो लगने का, अब्बीच् के अब्बीच्!
आज किसकी सुपारी है ताऊ?
लगता है भटक गया। अरे ये आप लोगों के साथ की ऊर्जा का असर है, आप की दुआओं का, वर्ना एक-सौ-तीन साल की उम्र में देखना, सुनना, समझना सब चला जाता है, बस यादें रह जाती हैं, वो भी बचपन और जवानी की -हाऽऽएऽऽऽ!
यानी कि धन्यवाद, शुक्रिया, नन्नी, नैन्ड्री, थैंक्यू!
@zeal
@ashish
धन्यवाद आपके पधारने और आपकी सलाह का;
मगर -(मच्छ नहीं-किन्तु-परन्तु-बट-लेकिन वाला)
मैंने तो स्वयं महसूस और व्यक्त किया है कि अन्य कई लोगों-ब्लॉगों का ज़िक्र बाक़ी है। दूसरे यह कोई विश्लेषण नहीं है, मैंने अपने अनुभव और नज़रिये को दर्ज किया है, और जिनको मैंने पढ़ा नहीं, उनके बारे में झूठ-मूठ क्या लिखूँ!
जितनों को पढ़ा है, उन पर जो भी मेरी राय दर्ज है - उस पर चर्चा उनकी रचना को संदर्भ सहित बता कर कर सकता हूँ। फ़िलहाल तो यही कह सकता हूँ कि आप को बहुत-बहुत धन्यवाद, इन नामों को बताने के लिए, जिन्हें पढ़कर अपनी क्षमता और पसन्द के अनुसार आगे राय बनाऊँगा।
अन्य ब्लॉग जाऊँगा जब मौक़ा मिले,नाम मैंने लिख लिए हैं-मगर यदि कोई इन लोगों के लिंक बता सके तो सरल हो जाए यात्रा!
@-मैंने तो स्वयं महसूस और व्यक्त किया है कि अन्य कई लोगों-ब्लॉगों का ज़िक्र बाक़ी है। दूसरे यह कोई विश्लेषण नहीं है, मैंने अपने अनुभव और नज़रिये को दर्ज किया है, और जिनको मैंने पढ़ा नहीं, उनके बारे में झूठ-मूठ क्या लिखूँ!
I completely agree with you. Without knowing someone, you cannot form any opinion about someone.
I just added my two cents, please do not take it as an offence.
Regards,
Divya
अरे वाह, किसी को नहीं छोडा।
--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
वाह!हिमाशुं मोहन जी,
हम भी लिंक का पीछा करते करते यहां तक पहुंच गए।
लिंकायमान पोस्ट के लिए आभार
आपकी चार्ली चैपलिन वाली फ़ोटो की चर्चा नही हुयी.. इस बात का अफ़सोस है.. :)
बहुत ही बढिया पोस्ट.. इन्सान तो आप अच्छे है ही.. :)
पंकज की बात से हम सहमत हैं! वो चार्ली चापलिन वाली फोटो पे कुछ प्रकाश डालिए!
आपके इस पोस्ट को "मनपसंद" वाले लिंक में जोड़ लिए हैं....यहीं से सभी का रास्ता मिल जायेगा. कितनो को तो पढ़े भी नहीं है अभी तक.
अब बस देखते रहिये साहब, सब कैसे चार्ली चैप्लिन पर टूट पड़ते हैं.. ;)
वैसे पंकज, जरा बच के भाई.. हिमांशु जी फंसा कर ही छोड़ेंगे तुम्हे.. :P
आपने कहा, अत: ईमानदारी से सारी ज़िम्मेदारी मेरी अपनी है। वैसे भी मेरी अकिंचन राय से किसी को क्या फ़र्क पड़ सकता है?
-आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी.
एक और चर्चा !
अच्छा विश्लेषण!
चित्र में चार्ली चैप्लिन जैसा कौन है?आप हैं?
thanx for visiting my blog @
qsba.blogspot.com
स्तुति देखो ! इन्होंने हम लड़कियों के बारे में क्या कहा है? आओ इनकी क्लास ली जाये. पंकज, देखो ये तुम्हें चढ़ा रहे हैं, चढ़ना मत !
वैसे आपकी चर्चा बड़ी अच्छी लगी. इनमें से बहुत से ब्लॉग मेरे मनपसंद भी हैं.
@zeal / Divya
कोई ऑफ़ेंस नहीं उत्साही दिव्या जी। मगर अच्छा मौक़ा दिया आपने यह कहने का कि इतनी औपचारिकता न तो मैं करता हूँ, न उसकी उम्मीद रखता हूँ। दम घुटता है ज़्यादा बनावट में।
आप को नहीं कह रहा - अभी तक के अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि हिन्दी-ब्लॉग-जगत में लगता है कि सब सहमे से रहते हैं कि पता नहीं किसी को क्या बुरा लग जाय? ऐसा ही मैंने अपने एक प्रशंसा वाले कमेण्ट के उत्तर में शुरूआती दौर में कहा भी था।
और मेरा कहने का उद्देश्य किसी का दिल दुखाना अगर नहीं है, फिर भी बुरा लगता है - तो लगे। इस डर से बहुत फ़ॉर्मल होना नहीं सुहाता मुझे। बिना इस औपचारिकता के - खुल कर बोलिए सब मुझसे -संवाद रहना ज़रूरी है, भले ही कोई गरियाये ही। बोलना न छोड़े!
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
न ज़ाकिर भाई! बहुत से छूट गए थे, जिनके नाम सुझाए गए उनके ब्लॉग पर हो भी आया इस बीच, अच्छा भी लगा। अगली बार उन ब्लॉगों को दर्ज करूँगा। मगर तब जब राय कुछ बन पाए!
@राजभाषा हिंदी
हर-हर गंगे! यानी राजभाषा हिन्दी की भी सेवा हो गई! रपट पड़े तो हर गंगा। आपको बहुत धन्यवाद, प्रोत्साहन के लिए।
@ललित शर्मा
आप देख रहे हैं न! हमने भी अपनी मूँछें दिखा ही दीं - भले ही चूहा कुतरी जैसी हों चित्र में। अच्छा लगा आपका आना और प्रोत्साहन देना।
@Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
@Stuti Pandey
@PD
@अल्पना वर्मा
@mukti
वो चार्ली चैप्लिन जैसी फ़ोटो पर क्या प्रकाश डालूँ? हां मैं ही हूँ, मगर बरसों पहले। नीचे वाले चित्र में धृतराष्ट्र भी मैं ही हूँ, मगर बरसों बाद। मज़ाक नहीं, कहिए तो इस रूप का क्लोज़ अप भी कभी पोस्ट करूँ?
आप लोग बहुरूपिया तो नहीं समझ रहे मुझे!
दर-अस्ल मैं यह मानता हूँ कि सुबह से शाम तक (और बाद में भी - अगली सुबह तक) मेरे कान्हा मुझसे न जाने कितने रूपों में मिलते हैं, कभी बतियाते हैं, कभी ठिठोली करते हैं और कभी चिढ़ाते-गरियाते-दण्डित भी करते हैं। कभी-कभी जब भूल जाता हूँ कि मेरे कान्हा ही तो आए थे - इस रूप में - इस बर्ताव में क्यों नहीं याद रख सका उन्हें? कहीं निरादर तो नहीं कर बैठा! और अगर मैंने उन्हें कटु बोला-लिखा-कहा-किया तो पछ्ताता भी हूँ।
यक़ीन मानिए, जो भी आप देते हैं मुझे वो सब कान्हा ही भेजते हैं; और जो मैं लौटाता हूँ - वो भी कान्हा को ही जाता है।
वैसे तो इस बात पर लिखा भी जा सकता है, मगर मन नहीं किया सबसे शेयर करने का -सिर्फ़ आप लोगों को सम्बोधित किया, शायद कान्हा यही चाहते होंगे।
और अल्पना जी, मैं पहले ही कह चुका कि विश्लेषण नहीं किया - बस निजी पसन्द/राय सार्वजनिक स्तर पर दर्ज हुई। थोड़ा सा लाउड थिंकिंग हुई है।
और मुक्ति, सही है -कहा तो है आपके बारे में, मगर सिर्फ़ आपके बारे में नहीं। और पंकज तो गया काम से।
@Comment deleted
अब इसका उत्तर कैसे दूँ? ? ???????
अच्छा देता हूँ - भाई संता इश्टाइल में-
Response deleted
:0 :)
अब बता?
:)
@सुलभ § सतरंगी
मैं यक़ीन से कह सकता हूँ कि अब से कुछ वक़्त बाद ये पोस्ट भी हँसने का अच्छा ज़रिया बन जाएगी, कम से कम मेरे लिए। बस ये देखना है कि वो वक़्त कब आता है। तब देखिएगा, ये बात भी अच्छी लगेगी!
:)
@mrityunjay kumar rai
अरे धन्यवाद मत दीजिए, पोस्ट अपडेट कीजिए। हम दो बार लौट भी आए उसके बाद आपके ब्लॉग पर जाकर!
@-
इतनी औपचारिकता न तो मैं करता हूँ, न उसकी उम्मीद रखता हूँ। दम घुटता है ज़्यादा बनावट में।....
Himanshu ji-
What you considered as formality, is modesty and humility in my humble opinion. And i personally feel that a degree of formality is required during conversation with everyone.
There are million type of people with different thinking and attitude. There will not be any fun if all will become alike.So just accept everyone , the way they are !
I also had many similar experiences in real and virtual life, but i prefer to maintain a cordial relationship with honest opinion and i prefer being formal.
'opcharikta' saves a relationship from breaking. I prefer courtesy, modesty, humility and of course 'Formality'.
kisi ke liye samman aur lihaaj ka parda pada rehna chahiye.
Samvaad baddastoor jari rahega....Nishchint rahein.
Regards,
आपके इस पोस्ट के कुछ हिस्से को चिट्ठाचर्चा के रूप में प्रस्तुत किया गया है. आशा है अनुमति देंगे. लिंक है-
http://chitthacharcha.blogspot.com/2010/05/blog-post_16.html
बेहतरीन, विस्तृत, लजवाब विश्लेषण!
यह पोस्ट श्रेष्ठ ब्लागीरी का अच्छा प्रतिनिधित्व करती है।
उम्दा और विस्तृत विश्लेषण
अच्छा चित्रण-विश्लेषण,आभार .
बहुत खूब...
खूबसूरत ब्लॉग-चित्रण
बी एस पाबला
वाह हिमांशु जी आपके संग बजियाते तो रहते ही हैं आज ब्लोगियाने भी लगे हैं । एक संग्रहणीय पोस्ट है ।
आज अच्छी खुराक मिली है...
@Raviratlami
बहुत-बहुत आभार आपका, पधारने के लिए, चाहे भूल से ही।
@मनोज कुमार
@sangeeta swarup
@डॉ. मनोज मिश्र
@रंजन
@बी एस पाबला
@बेचैन आत्मा
आप सबका बहुत धन्यवाद, पधारने के लिए और आभार प्रोत्साहन के लिए। अब मैं समझ गया हूं कि जो मैंने लिया उसी को चर्चा और विश्लेषण कहते हैं।
@दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
आपकी राय का, आपके पधारने का विशेष महत्व है मेरे लिए, आशीष बनाए रखें।
@अजय कुमार झा
भाई झा जी, मैं तो सोचता रहता हूँ कि आप इतने सारे लेखन, व्यवसाय की व्यस्तताएँ, अन्य मसरूफ़ियात के बीच टिप्पणी करने का भी समय निकाल कैसे पाते हैं? वो भी दिल्ली जैसे शहर में रहकर। बहुत-बहुत आभार।
सुन्दर लिंक संजोये हैं आपने
vakai....bahut achchha hai
कोशिश करूंगा कि मुझ जैसे नौसिखिए पर भी कभी आपकी नज़र-ए-इनायत हो...
जय हिंद...
रवि रतलामी जी की चिठ्ठाचर्चा से लिंक ले कर यहां आयी, बहुत बड़िया पोस्ट है और काफ़ी विस्तृत भी। आप की इसी प्रकार की अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
अरे वाह ! शुरुआत का साथी तो मैं भी हूँ ! भूल गये न ! पोस्टरस पर !
जानदार पोस्ट!आभार ।
देखिये आप ने इत्ती सुन्दर चर्चा भी कर डाली ....और हम जैसे बुद्धू पाठक यहाँ तक पहुँच ही ना पाए !
....वैसे मुझे लगता है कि बज्ज पर आपकी प्रारम्भिक सक्रियता ने इस चिंतन-मनन पर काफी मदद की होगी ?...है ना हिमांशु जी ?
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