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Monday, May 10, 2010

माँ को जादू ज़रूर आता है (मातृ-दिवस पर)

यह मातृ-दिवस पर कल लिखी गयी रचना है, इसीलिए आज ही आ सकी…
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माँ को जादू ज़रूर आता है!
कैसे हर बात जान जाती है
वो भूख-प्यास हो के दर्द हो के नींद लगे
पढ़ाई हो के छुप के शैतानी
किसने लड्डू निकाले डब्बे से
कौन पिल्ले उठा के लाया है
माँ को जादू ज़रूर आता है…


माँ की जब बात न मानो तो पीछे पछताओ
खेलो पानी से फिर हरारत हो
देख लें दादी तो क़यामत हो
जला के माचिसें खेलो तो हाथ जल जाए
काट ले बर्र तो बस जान ही निकल जाए
चोट पे फूँक का जादू सा असर
माँ को जादू ज़रूर आता है…


चीनी खालो तो पेट में गड़बड़
माँ नहीं करती दादी सी बड़-बड़
खाओ अमिया तो फुंसियाँ निकलें
कितनी गन्दी! कहाँ-कहाँ निकलें!
आँख में किरकिटी कि हाथ की फाँस-
माँ के छूते ही दर्द ग़ायब हो
माँ को जादू ज़रूर आता है…


माँ खिलाती है तो भर जाता है जी
बस चले तो पिला ही डाले घी
दूध पीना है सुबह एक गिलास
रात की बात रात को होगी
जब पहाड़े सुनेगी माँ हमसे
सेंकती जाएगी संग-संग रोटी
माँ के हाथों से दाल की ख़ुश्बू
माँ को जादू ज़रूर आता है…


और इक रोज़ बड़े होके सभी
माँ को समझाने लगें जाने क्या
माँ तो सब कुछ समझती है लेकिन
उनके समझाने की नासमझी पे
माँ को आता है तरस बच्चों पे
उनकी मजबूरी - दुनियादारी पे
माँ कहे या न कहे बात कोई-
माँ को जादू ज़रूर आता है.…


फिर भी माँ है के समझ जाती है
कोई हुज्जत नहीं, सवाल नहीं
किसी भी बात पर बवाल नहीं
और इक रोज़ वो भी आता है-
जब कोई दर्द बाँटने के लिए
सदा की तरह माँ नहीं रोती
क्योंकि उस रोज़ माँ नहीं होती
माँ को जादू ज़रूर आता है, माँ को जादू ज़रूर आता है……
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9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पढ़कर मन द्रवित हो गया ।

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

हा हा हा
बहुत बड़ी जादूगरनी होती हैं ये माएं.
मेरी वाली तो सच में बहुत ही महान हैं. (पांच मिनट पहले ही धमका गयी हैं कि इन्टरनेट कटने वाला है. पता नहीं उनको कैसे पता चल गया कि मैं आप से बात कर रहा हूँ !!!)

ZEAL said...

Indeed she has a magic wand...

Beautiful creation !

kumar zahid said...

और इक रोज़ वो भी आता है-
जब कोई दर्द बाँटने के लिए
सदा की तरह माँ नहीं रोती
क्योंकि उस रोज़ माँ नहीं होती


मां बस मां होती है
जब भी मां की बात होती है मेरे पास शब्द नहीं होते

Amitraghat said...

मुझसे दूर ही रह रहीं हैं
मां की चिता से उठ्ती लपटें,

मे स्फुलिंग से डरता था
मां को अब तक यह याद है ।

मां ऐसी ही होती है

mridula pradhan said...

bahot sunder rachna.

Himanshu Pandey said...

सहज सुघर रचना !
माँ सब जानती है ! माँ को जादू जरूर आता है !

Paise Ka Gyan said...

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Paise Ka Gyan said...

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