साथी

Friday, March 26, 2010

दोहे

आज दोहों पर भी हाथ आज़माया है-

 


हरियाली व्यवहार में, मन में खिसके रेत
झुकने में अव्वल मगर, फूलें-फलें न बेंत







कटता शीशम देखकर, गुमसुम बूढ़ा नीम
धागा   चिटका   प्रेम   का,  रोया बैठ रहीम



 


मन का मोल चुका रही, कमल-पात की ओस
आँखों  भर   दौलत   मिली,  साँसों   भर   संतोष


जाने किसकी याद है, जाने किसकी बात
होठों पर कलियाँ खिलीं, आँखों में बारात


यह सशक्त विधा हिन्दी में अभिव्यक्ति की नैसर्गिक क्षमता को उसी तरह तराशती है जैसे उर्दू में शे'र। मज़ा लेकिन गज़ब है, दोनों का।
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2 comments:

Suman said...

nice

हिमान्शु मोहन said...

@Suman
करें शुक्रिया आपका, ऐसा पाठक होय
कवि को प्रोत्साहन मिले,स्मृति रखे सँजोय