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Monday, November 19, 2007

SANGAM संगम तीरे

जैसे नए नए ईमेल-बाज़ हर मुफ़्त की ईमेल सेवा पर अपना एक खाता खोल लेते हैं, वैसे ही नए-नए ब्लॉगर भी करते हैं या नहीं ये तो मुझे नहीं मालूम मगर ये ज़रूर मालूम है कि मैंने अपना खाता पहले भी ब्लॉगर पर खोला था। मुझे ऐसा नहीं कि अंग्रेज़ी में ब्लॉग में कोई खास दिक्कत हो, मगर दिक्कत थी ज़रूर। वो भी दिल की दिक्कत थी। अरे जब यहाँ आया ही इसलिए था कि हिन्दी में लिखूँगा तो फिर अंग्रेज़ी की चुटिया क्यों खींचता?
किताबें भी अंग्रेज़ी की सस्ती मिलती हैं, अधिकतर विषयों पर जानकारी, तकनीकी और गैर-तकनीकी दोनों ही प्रकार की, वो भी अंग्रेज़ी में ही सुलभ है। मन मसोस कर रह जाता था कि कैसे अधिक से अधिक सामग्री हिन्दी में प्रस्तुत की जाए। तमाम शुरुआती दिक्कतों की वजह से बस शुरुआत नहीं हो पा रही थी। अब लगता है कि समय जो ऊपरवाले की कृपा से उपलब्ध हो गया है, ज़ाती तौर पर, उस का फ़ायदा उठा कर मन की कर सकूँगा।
आगे-आगे देखिए होता है क्या! (वैसे पहला मिस्रा भी मौजूँ है मेरे लिए - के - इब्तदा-ए-इश्क़ में रोता है क्या!; आखिर ये मेरा इश्क़ ही तो है हिन्दी के लिए! वर्ना ये बेचैनी कैसी?)
बख़ैरियत
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