अरे वाकई बड़ी गड़बड़ हो गई। हमने इस ब्लॉग पर आकर देखा ही नहीं - अइसे गए फेरि नहिं बहुरे… यानी 'मोहन' नाम सार्थक कर दिया…
और यहाँ भाई लोगों ने इतने ढेर सारे संदेश दे डाले। अशिष्टता हो गई, किसी को धन्यवाद ज्ञापित भी नहीं किया और कुछ लिखा भी नहीं यहाँ। हाथ साफ़ करते रहे पोस्टरस पर जाकर, जगह-जगह ऑटो-पोस्ट करवा कर।
सब को प्रणाम, सलाम, बड़ों को प्यार बच्चों को राम-राम।
देवियों और सज्जनों, यानी ख़वातीनों-हाज़रात! शुरूआत में तो कुछ खुराफ़ात नहीं करनी चाहिए मगर क्या करूँ - जो गुज़री है मुझ पर इस ब्लॉगियाने की कोशिश में - शुरूआती दौर में, पहले वही बयान करूँगा।
कल से शुरू, मगर तब तक आप से निवेदन है कि आप मेरे पोस्टरस यानी इलाहाबादी की बतकही, दस-बहाने और इब्तिदा=आग़ाज़=शुरूआत=पहल में से जहाँ ठीक समझें टहल आएँ, तब तक मैं यहाँ अपने अनुभव दर्ज करता हूँ।
अगर आप को शेर-ओ-शायरी पसंद है तो आप यक़ीन जानें सुख़नवर आपके इंतज़ार में अपना दीवान और याददाश्त के पन्ने, दोनों लिए बैठा है , अपना और दूसरों, दोनों का क़लाम सुनाने को।
2 comments:
sab jagah se nipat ke aate hain
प्रणाम और सलाम!!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
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