यथासंभव यह ब्लॉग हिन्दी में, हिन्दी हेतु रहेगा। सर्च इंजनों या अन्य तकनीकी कारणों से कुछ कोटि-शब्द अंग्रेज़ी में भी हो सकते हैं। मूलत: यह एक इलाहाबादी ब्लॉग है उस संगम के तीर(तट) से, जिसमें पवित्र नदियों गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है जो यहाँ की साहित्यिक-सांस्कृतिक अन्तर्धारा में प्रवाहित है।
साथी
Friday, April 16, 2010
Wednesday, April 14, 2010
नज़्मो-ग़ज़ल कहने का आसान तरीक़ा
सबसे पहले दर्द मेँ डूबे कुछ अल्फ़ाज़ चुनो,
फिर उन्हेँ ग़म की हरारत पे देर तक सेँको;
अनमने से रहो, रातें गुज़ारो आँखोँ मेँ,
करवटेँ यूँ लो के नीँद आए भी तो सो न सको।
उदास दिल, ज़ुबाँ गुमसुम मगर मुस्काते होँ लब,
नज़र मेँ ख़्वाब होँ ऐसे जो पूरे हो न सकेँ;
ये सलीका है क़ामयाब नज़्म कहने का।
बात आगे बढ़े, बढ़कर जुनूँ-फ़ितूर बने,
वक़्त समझो के आ रहा है ग़ज़ल कहने का।
दीवानापन अगर इतना बढ़े - सब तंज़ कसेँ,
यही अस्बाबो-हुनर है न ग़ज़ल कहने का...
फिर उन्हेँ ग़म की हरारत पे देर तक सेँको;
अनमने से रहो, रातें गुज़ारो आँखोँ मेँ,
करवटेँ यूँ लो के नीँद आए भी तो सो न सको।
उदास दिल, ज़ुबाँ गुमसुम मगर मुस्काते होँ लब,
नज़र मेँ ख़्वाब होँ ऐसे जो पूरे हो न सकेँ;
ये सलीका है क़ामयाब नज़्म कहने का।
बात आगे बढ़े, बढ़कर जुनूँ-फ़ितूर बने,
वक़्त समझो के आ रहा है ग़ज़ल कहने का।
दीवानापन अगर इतना बढ़े - सब तंज़ कसेँ,
यही अस्बाबो-हुनर है न ग़ज़ल कहने का...
Subscribe to:
Posts (Atom)