tag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post3732098061924248086..comments2023-10-30T21:40:24.450+05:30Comments on ॥ संगम तीरे ॥ Sangam Teere: मद्यं शरणं गच्छामि : 'बच्चन' के बहानेHimanshu Mohanhttp://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-64837318755236757292010-05-26T06:58:46.437+05:302010-05-26T06:58:46.437+05:30@विभिन्न विषयों पर मेरे पास छोटी-मोटी लाइब्रेरी सी...@विभिन्न विषयों पर मेरे पास छोटी-मोटी लाइब्रेरी सी ही होगी।<br />आपकी बातें बताती हैं यह सच ! <br />कवितांश सुन्दर है । <br />आज एक बैठकी में आपकी दो चार पोस्ट पढ़ गया हूँ ! दो चार बाकी हैं आज तक..कल पढूँगा । <br />अभी पोस्टरस देखना शेष रहा !Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-28995107909676125112010-05-15T17:15:30.236+05:302010-05-15T17:15:30.236+05:30फीतांकन ...
यहु ऐब पाले हो !!!!!!!!!
जिया सेर...ज...फीतांकन ... <br />यहु ऐब पाले हो !!!!!!!!!<br />जिया सेर...जिया :)Rajeev Nandan Dwivedi kahdojihttps://www.blogger.com/profile/13483194695860448024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-54233809630823072172010-05-15T13:28:44.105+05:302010-05-15T13:28:44.105+05:30अरे, दो चार इब्ने सफी देना - पढ़े जमाना हो गया जासू...अरे, दो चार इब्ने सफी देना - पढ़े जमाना हो गया <b>जासूसी दुनियां</b> को! :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-68944862793910975392010-05-15T13:25:39.793+05:302010-05-15T13:25:39.793+05:30प्रकृति में असंतुलन फैलाना ठीक नहीं । आपसे सीख कर ...प्रकृति में असंतुलन फैलाना ठीक नहीं । आपसे सीख कर सब कविता लिखना व सुनाना ही प्रारम्भ कर दें और पढ़ें व सुने ना, तब । हम तो फिर भी सुनेगे क्योंकि हमें अच्छी लगती है ।<br />पुस्तकें पढ़ना, रखना व हाथ में ले फोटो खिचाना, तीनों बहुत भाते हैं ।<br />बच्चन जी के पास मधुशाला के अलावा भी एक पूरी मधुशाला है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-43418506236922355532010-05-15T06:08:00.786+05:302010-05-15T06:08:00.786+05:30अलिये, इसी बहाने पसंद जान गये. :)
वैसे बच्चन जी क...अलिये, इसी बहाने पसंद जान गये. :)<br /><br />वैसे बच्चन जी की जीवनी की सारे भाग प्रभावित करते हैं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-86944167970515340772010-05-15T03:05:51.102+05:302010-05-15T03:05:51.102+05:30@अमरेन्द्र
न भाई! मेरी बहुत सी किताबें दोस्तों के ...@अमरेन्द्र<br />न भाई! मेरी बहुत सी किताबें दोस्तों के पास हैं, कई की तो दूसरी या तीसरी प्रति भी ख़रीद चुका। मेरी उक्ति कविता तक सीमित है, अन्य पुस्तकों पर लागू नहीं। जैसे पुराने शराबी को मैख़ाने वाले पहचानते हैं, वैसी पहचान है मेरी अच्छी पुस्तक की दुकान वालों से।<br />विभिन्न विषयों पर मेरे पास छोटी-मोटी लाइब्रेरी सी ही होगी। बस विषय अलग-अलग हैं; पुराणों से लेकर एक्यूप्रेशर तक, जेफ़्री आर्चर से लेकर इब्ने सफ़ी बी0ए0 तक। पढ़ने में मेरी कोई पूर्वाग्रह-ग्रस्त रुचि नहीं। उसी खुशी से सुरेन्द्रमोहन पाठक, कर्नल रंजीत, वेदप्रकाश शर्मा और उसी उत्साह से चेतन भगत, वैसे ही हरिवंशपुराण।<br />एक ही पुस्तक है जो एक मित्र सतीशकुमारजी की मेरे पास पड़ी है - "ऐज़ द क्रो फ़्लाइज़" जेफ़्री आर्चर की लिखी।<br />कविता नहीं, ग़ज़ल पढ़ सकता हूँ ख़रीद कर। ख़रीदता भी हूँ।<br />और यह आलेख मूलत: इस बात पर था कि बच्चन जी ने कितनी सहजता के साथ, बिना किसी छ्द्म दम्भ के, इस तरह के न जाने कितने शब्दों वाक्यांशों से समृद्ध किया हिन्दी को। उन्होंने हिन्दी में लोकधुन आधारित कई ऐसे गीतों की रचना की जिन्हें हम अक्सर "पारम्परिक" का लेबल लगा कर काम चला लेते हैं, जैसे नज़ीर अकबराबादी के भजन व अन्य रचनाएँ।<br /><br />@वीनस केशरी<br />भाई ग़ज़ल के बारे में तो ऊपर लिख ही दिया। कविता भी यदि परिष्कृत हो, तो पढ़ी जा सकती है।<br />यह अकविता टाइप चीज़ें ब्लैक कॉफ़ी के समान हैं, जिन्हें आदमी अपने से नाराज़ होने पर पी लेता है, और इतना भी नाराज़ नहीं होता कि ज़हर ही पी ले।Himanshu Mohanhttps://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-29911990071430173892010-05-15T02:18:34.736+05:302010-05-15T02:18:34.736+05:30सहजता की प्रकृति में ढ़ाल कर शब्द निर्मित करने की ...सहजता की प्रकृति में ढ़ाल कर शब्द निर्मित करने की गजब की <br />क्षमता थी बच्चन साहब के पास ! 'पर राष्ट्र मंत्रालय' और 'स्व राष्ट्र <br />मंत्रालय' को सर्वप्रथम विदेश और गृह मंत्रलय उन्होंने ही कहा | <br />...........<br />प्रकारांतर से आपने अपने बारे में भी कुछ बताया , यह जानकर अच्छा <br />लगा | <br />...........<br />@ '' जबकि कविता पढ़ने को मैं अच्छी आदत नहीं समझता। वो <br />भी ख़रीद कर–.......... ''<br />----------- तब तो आपने जाने कितनी मित्रों की किताबें दबा कर <br />रखी होंगी :) [ बस ऐ वें ही ... ]Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-77188544432735333432010-05-15T02:06:52.736+05:302010-05-15T02:06:52.736+05:30फीतांकन ... वाह
मुझे बच्चन जी की जीवनी बहुत पसंद...फीतांकन ... वाह <br /><br />मुझे बच्चन जी की जीवनी बहुत पसंद आयी <br /><br />पता नहीं क्यों शायद इसलिए कि इलाहाबाद की पृष्ठभूमि पर लिखी गई थी <br /><br />कविता से तो हम भी "थोडा" दूर रहते हैं <br />जानने की इच्छा है कि गजल के बारे में आपके क्या विचार हैं :)वीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2009678157680813557.post-32076819501009304782010-05-15T00:39:08.913+05:302010-05-15T00:39:08.913+05:30aapka safar yunhi chalta rahe iske liye shubhkaamn...aapka safar yunhi chalta rahe iske liye shubhkaamnayein..दिलीपhttps://www.blogger.com/profile/15304203780968402944noreply@blogger.com